दूसरा लण्ड] युद्ध जारी २४९ हे मित्र-वत्सल ! देखो, इन्द्र के समान पराक्रमी पाण्डव और पाञ्चाल लोग आनन्दित होकर किस तरह सिंहनाद कर रहे हैं । इस समय तुम्हीं हमारे पक्ष के योद्धाओं की रक्षा करो। कर्ण ने कहा :-महाराज! हमारे जीते जी तुम्हें खेद करने का कोई कारण नहीं । पाण्डवों के साथ पाञ्चाल, केकय और यादव लोग जो ये सब इकटे देख पड़ते हैं उनको जीत कर आज हम तुम्हें भारत का एकच्छत्रधारी राजा बनावेंगे। यह बात कृपाचार्य को सहन न हुई । वे बोले :-- हे कर्ण ! कुरुराज दुर्योधन के सामने तुमने अनेक बार अपने मुंह अपनी बड़ाई की है। परन्तु तुम्हारे पराक्रम का फल आज तक हमें देखने को नहीं मिला । तुम्हें डींग मारने का रोग सा हो गया है । महावीर अर्जुन की गैरहाजिरी में तो तुम बहुत पैतड़े बदला करते हो-बहुत घमंड की बातें कहा करते हो-पर उनके सामने वे सब बातें भूल जाते हो, फिर तुम्हारा गर्जन-तर्जन नहीं सुनाई पड़ता । जिस वीर पुरुष ने महादेव को प्रसन्न किया है उसकी बराबरी करने की किसमें शक्ति है ? कृपाचार्य की बात पर कर्ण को हँसी आई । उन्होंने कृपाचार्य से कहा :- हे ब्राह्मण ! समर-धुरन्धर वीरों के लिए अपने मुँह अपनी बड़ाई करना अनुचित नहीं । श्राप अर्जुन को जितना ज्ञानवान् और गुणवान् समझते हैं, वे उतने या उससे भी अधिक हो सकते हैं। परन्तु, याद रहे, हमें इन्द्र ने एक ऐसी शक्ति दी है जो कभी निष्फल नहीं हो सकती। जिस पर वह चलाई जाती है उसके प्राण लिये बिना वह नहीं रहती । इसी शक्ति के भरोसे हम कहते हैं कि आज हम अर्जुन रूर मारेंगे। अतएव हमारा गजन-तजेन यथार्थ है। उसे आप व्यर्थ न समझिए। आप ब्राह्मण हैं और वृद्ध हैं। इसी से आज आप इस तरह हमारा अपमान कर सके हैं। नहीं तो मजाल थी जो हमारे विषय में आप ऐसे शब्द कहते। परन्तु, खबरदार, फिर इस तरह के अनुचित शब्द अपने मुँह से न निकालिएगा; नहीं तो हम तलवार से आपकी जीभ काट लेंगे। __ अपने मामा कृपाचार्य के विषय में कर्ण को ऐसे कठोर वचन कहते सुन महातेजस्वी अश्वत्थामा ने तलवार निकाल ली ओर कर्ण की तरफ दौड़े :--- हे नराधम ! अर्जुन ने तुम्हारी आँख के सामने ही जब सिन्धुराज जयद्रथ को यमपुर पठाया तब तुम्हारा बल-वीर्य कहाँ था ? कुछ भी हो, आज हम तुम्हारी इस अशिष्टता और मूढ़ता का फल तुम्हें चखाये बिना न रहेंगे। अश्वत्थामा को तिरस्कार की दृष्टि से देखकर कर्ण ने दुर्योधन से कहा :- महाराज ! इस अधम और बुद्धिहीन ब्राह्मण का परित्याग कीजिए। हम इसे अपना भुज- बल अभी दिखाते हैं। तब अश्वत्थामा ने कहा :- हे सूतपुत्र ! हमने तुम्हें क्षमा किया । अर्जुन ही तुम्हारा घमण्ड शीघ्र चूर करेंगे। इसके बाद दुर्योधन ने समझा बुझा कर सबको शान्त किया। तब पाण्डवों के साथ कर्ण का भीषण युद्ध प्रारम्भ हुआ। इस समय बहुत रात हो गई थी। महा-घोर अन्धकार छाया था । इससे, द्रोण की आज्ञा के अनुसार, कौरवों के सेनाध्यक्षों ने मारे जाने से बची हुई सेना एकत्र करके एक व्यूह बनाया। तब आचार्य ने कहा:- हे पैदल सेना के वीरो! तुम लोग अपने अपने अस्त्र-शस्त्र रख कर जलती हुई मशालें हाथ में लो। यह देख कर पाण्डवों ने भी वैसा ही किया। फल यह हुआ कि युद्ध का वह महाभयंकर मैदान जगमगा उठा और वीरों के हाथ में चमचमाते हुए तेज धारवाले हथियार बिजली की तरह फा० ३२
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