पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२७२

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२४० सचित्र महाभारत [ दूसरा खण्ड पहले उनसे युद्ध करना होगा। कुछ भी हो, हम तुम्हारे बदन पर एक ऐसा कवच बाँधे देते हैं जिसे छेद कर कोई भी शस्त्र तुम्हें घायल न कर सकेगा। तुम खुद भी महा बलवान् और पराक्रमी हो। प्रयत्न करने से तुम खुद ही विजय प्राप्त कर सकते हो । अतएव तुम्हीं जाकर अर्जुन का सामना करो और उन्हें रास्ते ही में रोक रक्खो । __यह कह कर द्रोणाचार्य ने दुर्योधन के बदन पर मन्त्रों से पवित्र किया हुआ एक महा-अद्भुत कवच बाँधा और उन्हें उस भयानक युद्ध में भेज दिया। दुर्योधन एक हजार चतुरङ्गिनी सेना और बहुत से महारथी योद्धा लेकर, मारू बाजे बजाते हुए, बड़े आडम्बर के साथ अर्जुन को रोकने दौड़े। ___ इधर दो-पहर ढल गई। धीरे धीरे सूर्यास्त होने में कुछ ही समय बाक़ी रहा। तब तक अर्जुन ने कौरवों के अनगिनत योद्धा और सैनिक मार गिराये। सारी सेना को उन्होंने मथ डाला। चारों तरफ हाहाकार मच गया। देर तक महा भीषण युद्ध करने से अर्जुन बहुत थक गये। उनके रथ के घोड़े भी बहुत घायल हो गये। कौरवों की सेना में महाप्रलय मचा कर किसी तरह जल्दी जल्दी वे शकट-व्यूह से निकल आये । तब उन्हें बहुत दूर पर आगे वह जगह दिखाई दी जहाँ सूचि-व्यूह के बीच में बड़े बड़े महारथियों से रक्षित जयद्रथ सूर्यास्त की प्रतीक्षा कर रहे थे। अर्जुन ने कहा :-हे माधव ! हमारे घोड़े बहुत घायल हैं और थक भी बहुत गये हैं। इससे उन्हें कुछ देर विश्राम देने के लिए यही अच्छा मौका है। कृष्ण ने भी इस बात को अच्छा समझा । तब अर्जुन रथ से उतर पड़े और गाण्डीव को हाथ में लेकर घोड़ों की, रथ की और कृष्ण की रक्षा करने लगे। घोड़ों की चिकित्सा में कृष्ण बड़े चतुर थे। उन्होंने देखा कि अर्जुन तो रखवाली कर ही रहे हैं, घोड़ों को खोल देना चाहिए। इससे उन्होंने घोड़ों को रथ से खोल दिया। फिर टूटे हुए बाण आदि उनके बदन से निकालकर उन्हें खूब मला और पानी पिलाया। कुछ देर तक आराम करने पर घोड़ों की थकावट दूर हो गई। शस्त्र लगने के कारण उत्पन्न हुई पीड़ा भी जाती रही । उनमें मानो नई जान आ गई। तब कृष्ण ने उन्हें फिर जोता और अर्जुन को सवार करा कर आप भी रथ पर सवार हो गये। घोड़े बड़ी तेज़ी से उस तरफ भागे जहाँ जयद्रथ एक एक पल दिन का हिसाब लगा रहे थे। अर्जुन को बड़े वेग से इस तरह बेरोक-टोक जाते देख कौरवों की सेना में महाकोलाहल होने लगा। तब उन्हें रोकने के लिए दुर्योधन जल्दी जल्दी आगे बढ़े। अर्जुन ने बहुत ऋद्ध होकर दुर्योधन पर आक्रमण किया। इतने में किसी ने झूठी खबर उड़ा दी कि-राजा मारे गये ! इससे सेना में चारों तरफ हाहाकार होने लगा। परन्तु जब अर्जुन के महा प्रचण्ड शस्त्रों को दुर्योधन बड़ी बहादुरी से सहन करने और कृष्ण तथा अर्जुन को उलटा मारने लगे तब सब लोगों को धीरज आया । कौरवों के पक्षवालों को यह तमाशा देख कर बड़ा विस्मय हुआ। वे मारे खुशी के सिंहनाद करने लगे। कृष्ण ने कहा :-हे पार्थ ! बड़े आश्चर्य की बात है कि तुम्हारे सारे बाण व्यर्थ जा रहे हैं। एक भी दुर्योधन पर असर नहीं करता। यह मामला क्या है, कुछ समझ में नहीं आता। आज क्या पहले की अपेक्षा गाण्डीव कमजोर हो गया है, अथवा तुम्हारी मुट्ठी या भुजाओं में ही कमजोरी आ गई है ? अर्जुन बोले : हे वासुदेवं ! आचार्य द्रोण ने दुर्योधन के बदन पर ऐसा कवच बाँधा है जो शस्त्रास्त्र-द्वारा नहीं छिद सकता। इस बात को आप सच समझिए। इस कवच के बाँधने की तरकीब आचार्य ने अकेले हमीं को सिखलाई थी। मनुष्य के चलाये हुए बाणों की बात तो दर है, इन्द्र के वञ की मार से भी वह नहीं टूट सकता। किन्तु इस कवच को दुर्योधन ने स्त्रियों को