पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२७

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[पहला खण्ड
वंशावली
अन्त में भीष्म ही को सारे अनिष्ट और सारे दुःख का कारण समझ कर अम्बा को उन पर बड़ा क्रोध आया । उनसे बदला लेने का उपाय ढूँढ़ने के लिए उसने ऋषियों के एक एक आश्रम में जाना प्रारम्भ किया।

एक दिन एक आश्रम में जितने तपस्वी थे सबसे उसने अपना हाल कहा और उनसे प्रार्थना की कि आप मुझसे बतलाइए कि मुझे अब क्या करना चाहिए। वह इस प्रकार तपस्वियों से अपना दुःख कह ही रही थी कि उसके नाना राजर्षि होत्रवाहन वहाँ आये । उन्होंने अम्बा की कथा बड़े दु:ख से सुनी। उसे सुन कर उनके हृदय पर गहरी चोट लगी । उन्होंने सलाह दी कि तम महर्षि जामदग्न्य की शरण चलो। वे बोले: हे पुत्री ! महात्मा परशुराम हमारे भाई हैं । वही भीष्म के गुरु हैं । तुम उनके पास चल कर अपना परिचय दो। फिर उनसे अपनी सारी दुःख-कहानी कहो । हमें विश्वास है कि वे तुम पर अवश्य दया करेंगे और भीष्म को उचित दण्ड देंगे। यह कह कर राजर्षि होत्रवाहन ने अम्बा को साथ लिया और जहाँ परशुराम अपने शिष्यों के बीच में बैठे थे वहाँ जाकर उपस्थित हुए। अम्बा ने महर्षि परशुराम के चरणों पर अपना मस्तक रख दिया और रोती हुई बोली : भगवन् ! इस घोर दुःख और शोक से आप मेरा उद्धार कीजिए । महात्मा परशुराम अपने बन्धु की दौहित्री अम्बा को इस प्रकार कहते और दुःख से इतना व्याकुल होते देख दया और स्नेह से द्रवित हो उठे। उनका हृदय पानी पानी हो गया । उन्होंने उससे प्रेमपूर्वक कहा : हे राजनन्दिनी ! तुम अपने दुख का कारण बतलाओं; हम तुम्हारा अभिलाष पूर्ण करेंगे। अम्बा ने महात्मा परशुराम से अपनी सारी कथा कह सुनाई । तब परशुराम बोले : हे पुत्री ! यदि तुम्हारी इच्छा हो तो हम शाल्वराज को तुम्हारे साथ विवाह करने की आज्ञा दे सकते हैं । या, हम भीष्म के पास दूत भेजकर तुमसे क्षमा माँगने के लिए उन्हें लाचार कर सकते हैं। जो तुम कहो वही करने के लिए हम तैयार हैं। इसके उत्तर में अम्बा ने कहा : देव ! शाल्वराज ने जब मुझे स्वीकार न करके मुझे लौटा दिया मेरे साथ विवाह करने से जब उन्होंने इनकार कर दिया-तब मैं उनके यहाँ फिर नहीं जा सकती। उनसे विवाह करने की अब मुझे इच्छा नहीं। भीष्म ही मेरे सारे दुःखों के कारण हैं। इससे यदि आप उनको प्राणदण्ड दें तो मेग शोक दूर हो सकता है। परशुराम ने पहले तो बहुत कुछ इधर-उधर किया। पर अन्त में उन्होंने अम्बा की इच्छा पूर्ण करने का वचन दिया। लाचार होकर उन्होंने भीष्म के साथ युद्ध करने की ठानी। इसी विचार से अम्बा को साथ लिये हुए, हस्तिनापुर के पास कुरुक्षेत्र में आकर वे उपस्थित हुए, और भीष्म को अपने आने की खबर दी। गुरु के आने की बात सुन कर भीष्म बड़े प्रसन्न हुए। जो ब्राह्मण यह खबर लाये थे उनको अनेक गोदान देकर उन्होंने सन्तुष्ट किया। इसके अनन्तर शीघ्र ही वे परशुराम के दर्शन करने आये और उनकी विधिपूर्वक पूजा की। भीष्म की पूजा ग्रहण करके परशुरामजी बोले : हे भीष्म ! तुमने इस कन्या को जबरदस्ती हरण करके इसे बहुत क्लेश दिया है। इस कारण अब इसके साथ और कोई विवाह नहीं करना चाहता -इसे ग्रहण करने की अब कोई इच्छा नहीं करता । इससे तुम्हें उचित है कि इसे तुम अपनी पत्नी बनाकर अपने घर रक्खो और इसका जो अपमान हुआ है उससे इस प्रकार इसे बचाओ।