पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२४६

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२१८ सचित्र महाभारत [दूसरा खण्ड महाराज ! हम सञ्जय हैं। आपको हमारा प्रणाम है। कुरु पितामह भीष्म आज युद्ध में मारे गये । योद्धाओं में जो सबसे श्रेष्ठ थे, और कौरव-वीरों को जिनका इतना भरोसा था, वही भीष्म आज बाणों की सेज पर सोये हैं । जिन्होंने काशी के महायुद्ध में सैकड़ों राजाओं के साथ एक-रथ युद्ध करके सबको हरा दिया; खद परशुराम भी जिहें नहीं जीत सके; वही भीष्म आज शिखण्डी के द्वारा परास्त होकर जमीन पर पड़े हैं। शूरता में जो इन्द्र के समान, स्थिरता में हिमालय के समान, सहन-शीलता में पृथ्वी के समान और गम्भीरता में समुद्र के समान थे, वीरों का संहार करनेवाले वही महावीर भीष्म दस दिन तक अपनी सेना की रक्षा करके और अनेक अद्भुत अद्भुत काम करके आज सूर्य की तरह अस्त हो गये। धृतराष्ट्र ने कहा :-हे सञ्जय । यह तुम कैसे कह रहे हो कि भीष्म आज मारे गये ! देवता भी जिन्हें नहीं जीत सकते थे ऐसे महादुर्धर्ष भीष्म को पाञ्चाल देश के शिखण्डी ने युद्ध में क्यों कर मारा ? संसार में जितने धनुप धरनेवाले हैं उन सबमें श्रेष्ठ भीष्म के मारे जाने की खबर सुनने से अधिक और क्या दुःख हो सकता है ? ओहो ! क्या ही आश्चर्य की बात है ! जिसने दस दिन तक इन्द्र की तरह अनन्त बाण-वर्षा करके एक अरब वीरों को मार गिराया वही आज खद ही मारा जाकर, प्रचण्ड पवन के झकोरों से टूट कर गिरे हुए वृक्ष की तरह युद्ध के मैदान में पड़ा है। महारथियों के कुल में उत्पन्न हुए उस वीर पुरुष के हारने का सारा वृत्तान्त हमसे कहो; क्योंकि सब बातें अच्छी तरह सुन बिना हम नहीं रह सकते। सजय बोले:-महाराज इस युद्ध के सम्बन्ध में जिस महात्मा के वरदान से हम आँख से न देख पड़नेवाली बातें भी देख सकते हैं, बहुत दूर होनेवाली बातें भी सुन सकते हैं, और दूसरों की मन की भी बातें जान सकते हैं, उन्हीं को नमस्कार करके हम विस्तारपूर्वक युद्ध का वर्णन करते हैं, सुनिए । इसके अनन्तर पहली रात को पाण्डवों का भीष्म के पास जाने, उनके उपदेश के अनुसार व्यूह की रचना करने और युद्धारम्भ होने आदि का यथार्थ वर्णन करके सञ्जय कहने लगे :- . ____जब शिखण्डी को आगे करके पाण्डवों की सेना ने कौरवों से घिरे हुए भीष्म पर आक्रमण किया तब महा घन-घोर युद्ध होने लगा। वज्र हाथ में लिये हुए इन्द्र का सामना जैसे दैत्यों के दल ने किया था, ठीक उसी तरह महारथी भीष्म का सामना पाण्डव लोगों ने किया। तब पितामह ने महाघोर मूर्ति धारण की और इन्द्र के वज्र पर रगड़ कर तेज़ किये गये सैकड़ों-हज़ारों बाणों की वर्षा करके आकाश-पाताल एक कर दिया। धीरे धीरे हमारी सेना का नाश करते करते भीम और अर्जुन व्यूह के द्वार पर जा पहुंचे। शिखण्डी के रथ को बीच में डाल कर वे उसकी रक्षा करते थे। इससे शिखण्डी का रथ क्रम क्रम से आगे को बढ़ता गया और कुछ देर में भीष्म के ग्थ के पास पहुँच गया । तब अर्जुन ने कहा : हे शिखण्डी ! तुम्हारे लिए यही सबसे अच्छा मौका है। इस समय और किसी बात का सोच विचार न करके तुम तुरन्त ही भीष्म पर वार करो। अर्जुन के कहने के अनुसार शिखण्डी ने भीष्म की छाती पर बाण मारना प्रारम्भ कर दिया। परन्तु पितामह ने शिखण्डी की तरफ़ तुच्छ दृष्टि से देखा-उन्होंने शिखण्डी की अवज्ञा-मात्र की। शिखण्डी के वार पर वार करने पर भी उन्होंने एक बार भी उन पर बारण न चलाया न और ही किसी शस्त्र से उन पर चोट की। शिखण्डी की मार की कुछ भी परवा न करके पहले ही की तरह वे और और योद्धाओं पर बाणवषो करते रहे। किन्तु शिखण्डी के ध्यान में यह बात नहीं आई। जिसमें शिखण्डी को यह न मालूम हो कि