२१४ सचित्र महाभारत [ दूसरा खण्ड मोह के कारण तुम्हें भले बुरे का ज्ञान नहीं रहा। तुम इस समय ज्ञान-शून्य हो रहे हो । यदि ऐसा न होता तो हम कभी तुम्हें इस अपराध के लिए क्षमा न करते । खाण्डव-दाह के समय अर्जुन ने किस प्रकार अमि को तृप्त किया था, सो याद है ? गन्धवों के हाथ से पाण्डवों ने जो तुम्हें बचाया था, वह स्मरण है ? कर्ण आदि जिन पाँच रथियों का तुम्हें इतना भरोसा है उन्हीं का, विराट-नगर में, अर्जुन के द्वारा जो पराभव हुआ था वह अब तक भूला तो नहीं ? पाण्डवों के बल-पौरुप का नमूना, इस तरह, कई दफे तुम्हें देखने को मिल गया है। फिर क्यों उनके न हारने पर इस समय तुम्हें आश्चर्य हो रहा है ? कुछ भी हो, जो प्रतिज्ञा हमने की है अन्त तक हम उस पर दृढ़ रहेंगे। जाव, अब तुम सुख से सोओ। कल हमारा महा-युद्ध होगा। दूसरे दिन सबेरा होते ही शान्तनु-सुत भीष्म बहुत बड़ी सेना लेकर सेना-निवेश से बाहर निकले । युद्ध के मैदान में आकर उन्होंने सर्वतोभद्र नाम का व्यूह बनाया; अच्छे अच्छे योद्धाओं को अपनी रक्षा का काम सौंपा; और उस व्यूह के द्वार पर रह कर लड़न और सेना की देख-भाल करने का भार खुद अपने ही ऊपर लिया। उधर युधिष्ठिर ने भी इस व्यूह के जवाब में एक व्यूह बनाया । तब भीष्म ने जीने की आशा छोड़ दी और जलती हुई आग की प्रचण्ड ज्वाला के सदृश पाण्डवों की सेना को जलाना प्रारम्भ कर दिया । महा पैने अस्त्र-शस्त्रों ने पाण्डवों की सेना को चारों ओर से छा लिया और अनन्त रथ, हाथी, तथा घोड़े बिना सवारों के हो होकर भागने लगे। खींच कर बाण छोड़ने से भीष्म के धन्वा की डोरी का शब्द क्रम क्रम से तेज़ होने लगा । यहाँ तक कि पाण्डव-पक्ष के योद्वाओं को कुछ देर में वह वज्र के समान कठोर सुनाई देने लगा। उससे पाण्डवों के वीर बहुत डर गये । देखते ही देखते भीष्म ने पाण्डवों की सोमक-सेना प्रायः बिलकुल ही काट डाली। तब भीष्म के तीखे बाणां से बिध कर बड़े बड़े महारथी तक भागने लगे। कोई भी उन्हें लौटाने में समर्थ न हुआ। वे लोग मारे डर के इतने विह्वल और व्याकुल हो गये कि दस पाँच की तो बात ही नहीं, दो आदमी भी एकत्र एक जगह न दिखाई देने लगे। चारों तरफ कोलाहल और हाय हाय मात्र सुनाई पड़ने लगा। उस समय सेना की यह दशा और पितामह भीष्म पर हथियार चलाने में अर्जुन की उदासीनता देख कर कृष्ण को बहुत रंज हुआ। उन्होंने रथ खड़ा कर दिया और बोले :- हे अर्जुन ! सभा में तुमने भीष्म के मारने की प्रतिज्ञा की थी। इस समय, क्षत्रिय होकर भी, कैसे तुम उसे झूठ कर रहे हो ? क्षत्रियों के धर्म का स्मरण करके सन्ताप छोड़ो और युद्ध करो। अर्जुन ने कृष्ण की तरफ़ तिरछी दृष्टि करके मुँह नीचा किये हुए कहा :- हे कृष्ण ! जिनको मारना पाप है उन्हीं को मार कर यदि नरक की यन्त्रणा भोगना था तो साधारण वन-वास के दुःख से हम लोग क्यों इतना घबराये ? अपने बन्धु-बान्धवों को मारकर नरक जाने की अपेक्षा जङ्गल में पड़े रहना और फल-फूल खाकर जीवन-निर्वाह करना क्या अधिक अच्छा नहीं ? खैर आप ही के उपदेश के अनुसार हमने युद्ध का प्रारम्भ किया है। आप ही के कहने के अनुसार अब भी युद्ध करेंगे। इससे जहाँ आपकी इच्छा हो, हमारा रथ ले चलिए। तब कृष्ण ने अर्जुन का रथ भीष्म के पास ले जाकर खड़ा कर दिया । अर्जुन ने बड़ी ही बे- परवाही से भीष्म पर आक्रमण किया। उनसे अर्जुन बे-मन युद्ध करने लगे। फल यह हुआ कि अर्जुन की हलकी वारों का निवारण करते हुए भीष्म ने पाण्डवों की सेना का नाश पहले ही की तरह जारी रक्खा । कृष्ण ने देखा कि युधिष्ठिर की सेना कटती जा रही है, तिस पर भी अर्जुन युद्ध में मन नहीं लगाते- भीष्म के साथ लड़कों का सा खेल कर रहे हैं। इस पर उन्हें महाक्रोध हुआ। क्रोध से वे अन्धे हो गये और खुद युद्ध न करने की अपनी प्रतिज्ञा भूल गये। वे रथ से कूद पड़े और भीष्म पर वार करने के लिए सुदर्शन चक्र को घुमाते हुए पैदल ही दौड़े।
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