पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२४०

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२१२ सचित्र महाभारत [ दूसरा खण्ड हे आचार्य ! यह देखिए दुर्योधनवाले सेना-विभाग में राक्षसों की महाघोर कोलाहल-ध्वनि सुनाई दे रही है। इससे इन निशाचरों के हाथ से उनकी रक्षा किये बिना निस्तार नहीं। ___ यह कह कर बहुत से महारथी लेकर भीष्म और द्रोण ने दुर्योधन की सहायता के लिए गमन किया । जाकर उन्होंने देखा कि राक्षसों के मायायुद्ध के प्रभाव से कौरव लोग रुधिर में लद-फद हो रहे हैं। उनके चेहरे उतर गये हैं। जान पड़ता है कि वे बे-तरह डर गये हैं। किसी का कुछ भी किया नहीं होता । सब एक दूसरे का मुंह देखते हुए चुपचाप खड़े हैं । प्रधान प्रधान कौरवों की यह दशा देख कर कितने ही सैनिक युद्ध का मैदान छोड़ छोड़ कर भाग रहे हैं । इस पर उन भगोड़ों का बार-बार धिक्कार करके, भीष्म जोर से कहने लगे :- ___हे योद्धाओ ! राजा दुर्योधन को राक्षसों के हाथ में सौप कर तुम्हें इस तरह भागना उचित नहीं । तुरन्त लौटो । खबरदार, जो कोई भागा। परन्तु उन लोगों के होश-हवास बिलकुल ही ठिकाने न थे । इससे किसी ने भीष्म की बात न सुनी; और जिसने सुनी भी उसने उसकी परवा न की। तब भीष्म उदास होकर दुर्योधन से कहने लगे :- ___ हे राजन् ! तुम्हें अपने आपको इस तरह विपद के मुँह में डालना उचित नहीं । राजा को चाहिए कि वह हमेशा ही अपनी रक्षा का अच्छा प्रबन्ध करके युद्ध करे । हम सब लोग यहाँ पर आप ही का उद्देश्य पूग करने के लिए हैं। यदि किसी पर आपको अधिक क्रोध आवे तो हम लोगों में से किसी एक को उसे दण्ड देने के लिए आपको आज्ञा देनी चाहिए । यह कह कर महावीर भगदत्त से भीष्म बोले :- ___ हे महाराज ! आपने पहले बड़े बड़े अद्भुत पराक्रम के काम किये हैं। इससे आप ही घटोत्कच का सामना करने योग्य योद्धा है। अब आप ही इस महाबली निशाचर का घमण्ड चूर करें। ___ भगदत्त को इस तरह आज्ञा देकर भीष्म ने दुर्योधन को एक ऐसी जगह पहुँचा दिया जहाँ किसी तरह का डर न था। यह करके फिर आप युद्ध के काम में लग गये। ___इस बीच में भीमसेन के मुँह से अपने पुत्र इरावान् का आना, उसका भीषण युद्ध, उसकी वीरता और उसकी मृत्यु का समाचार सुन कर अर्जुन ने बहुत शोक किया। वे कृष्ण से बोले :- हे मधुसूदन ! यह जो हमारे बन्धु-बान्धवों का नाश हो रहा है, उससे क्या लाभ होगा ? क्यों धर्मराज केवल पाँच गाँव लेकर इस विवाद को मेटने की चेष्टा करते थे, से बात इस समय अच्छी तरह हमारी समझ में आ रही है । क्षत्रियों के धर्म को धिक् ! हाय हाय, राज्य-सम्पदा पाने के लिए क्षत्रियों को अपने प्यारे से भी प्यारे जनों को मृत्यु के मुँह में झोंकना पड़ता है । कुछ भी हो, अब इस मामले में हम इतनी दूर निकल आये हैं कि लौट नहीं सकते। जो कुछ होना होगा सा होगा। अब व्यर्थ देर करना उचित नहीं । इससे जहाँ सबसे भीषण युद्ध होता हो वहाँ हमें शीघ्र ले चलो। द्रोण आदि महारथियों से रक्षित होकर जहाँ भीष्म बड़ी ही निर्दयता से पाण्डवों की सेना को काट रहे थे, अर्जुन के इच्छानुसार, कृष्ण वहीं उनको ले गये । पुत्र के मारे जाने से अर्जुन क्रोध से जले भुने थे ही; कौरवों की सेना को मार कर वे उसकी सारी कसर निकालने लगे। बड़े बड़े कौरव लोगों को लेने के देने पड़ गये । कहाँ वे पाण्डव पर आक्रमण कर रहे थे, कहाँ खुद ही उन्हें अपनी जान बचाना मुश्किल हो गया। अब पाण्डवों के सेनाध्यक्षों को मौका मिला। वे फिर सँभले और कौरवों को बे-तरह पीड़ित करने लगे। ___यह सुयोग हाथ आते ही भीमसेन ने कौरवों के व्यूह को तोड़ डाला और उसके भीतर जहाँ धृतराष्ट्र के पुत्र और कुटुम्बीय थे, जा पहुँचे । वहाँ उन्होंने सारी मोह-ममता छोड़ कर एक एक को यमपुर भेजना आरम्भ कर दिया। उस समय वहाँ कोई भी उन्हें भीमसेन के हाथ से न बचा सका।