२०८ सचित्र महाभारत [दूसरा खण्ड सी सेना को, यमराज के घर पहुँचा दिया। अधिक और क्या कहा जाय, वहाँ रुधिर की नदी बह निकली। साक्षात् काल-स्वरूप भीमसेन के अद्भुत युद्ध को देख कर सैनिक लोग हाहाकार मचाने लगे। इस हाहाकार और कोलाहल को सुन कर भीष्म ने अपने पास की सेना का व्यूह बना दिया और आप खुद भीमसेन का मुकाबला करने चले। उन्होंने आते ही भीम की रक्षा करनेवाले पाण्डव वीरों को अपने तीखे शरों से तोप कर उनके घोड़े मार गिराये । __तब महाबली सात्यकि अकस्मात् न मालूम कहाँ से आ पहुँचे। आते ही वे झट आगे को गये और भीष्म के सारथि को मार कर ज़मीन पर गिरा दिया। यह देख भीमसेन सात्यकि के रथ पर सवार हो गये और शक्ति, गदा तथा और अनेक अस्त्र-शस्त्र चलाते चलाते वहाँ से निकल आये। उधर रथ पर सारथि न होने से भीष्म के घोड़े भड़क उठे और भीष्म को लेकर लड़ाई के मैदान से बेतहाशा भागे। महावीर अर्जुन और उन्हीं के समान तेजस्वी उनके पुत्र अभिमन्यु ने जब देखा कि भीष्म युद्ध के मैदान में नहीं हैं तब उन्हें शत्रओं पर मार करने का और भी अच्छा मौका मिला। बड़े ही प्रचण्ड विक्रम से वे कौरव-सेना पर टूट पड़े। अभिमन्यु ने दुर्योधन के बेटे-लक्ष्मण के नाकों दम कर दिया- उसे बेहद पीड़ित किया । यह देख कर बहुत से कौरव-वीरों के साथ स्वयं दुर्योधन को मदद के लिए वहाँ आना पड़ा। उस समय अर्जुन के विकराल बाण कौरवों के पक्ष के सैकड़ों छोटे मोटे राजाओं को यमालय भेजने लगे। कठोर मार खा खा कर कौरवों की सेना बे तरह पीड़ित हो उठी और जहाँ जिसे रास्ता मिला भागने लगी। भीष्म का रचा हुआ व्यूह एक-दम ही ढीला हो गया-सैनिक लोग अपनी जगह पर न ठहर सके; उनके पैर उखड़ गये। - इतने में महात्मा भीष्म युद्ध के मैदान में लौट आये और वहाँ का अद्भुत हाल देख कर द्रोणाचार्य से कहने लगे :-- हे ब्राह्मण-श्रेष्ठ ! यह देखो कौरवों की सेना का अर्जुन किस तरह नाश कर रहे हैं। सचमुच ही इस समय वे बड़ा भीषण काम कर रहे हैं । अाज अब फिर सब सेना को एकत्र करके व्यूह बनाना सम्भव नहीं। जो जिधर पाता है भागा जा रहा है। फिर, कहिए, कैसे व्यूह बन सकता है ? सूर्यदेव भी अस्ता- चल पर पहुँचना चाहते हैं; सन्ध्या होने में कुछ ही देरी है। इससे इस समय सेना को डेरों में जाने की प्राज्ञा देने के सिवा और कुछ नहीं हो सकता। ___ जब कौरव-सेना ने युद्ध के मैदान की तरफ पीठ कर दी तब कृष्ण और अर्जुन ने आनन्दपूर्वक जोर से शङ्ख बजाया। इस प्रकार उन्होंने उस दिन का युद्ध समाप्त किया। इसके अगले दिन जो युद्ध हुआ उसमें भी अर्जुन ने बड़ी वीरता दिखाई । उनके बल, विक्रम और प्रबल प्रताप को कौरव लोग नहीं सह सके। जिस तरह सावन-भादों के मेघों से वृष्टि की झड़ी लगती है उसी तरह अर्जुन ने अपने गाण्डीव धन्वा से बाणों की झड़ी लगा दी । कौरव-सेना उनकी मार न सह कर फिर भागने लगी। यह देख दुर्योधन का मुँह पीला पड़ गया; उस पर उदासीनता छा गई । बहुत दुखी होकर वे भीष्म के पास आये और बोले :- हे पितामह ! शस्त्रास्त्र-विद्या के प्राचार्य महात्मा द्रोण और आपके रहते कौरव-सेना में भगदड़ मच रही है, यह कैसी बात है। श्राप देख रहे हैं कि इस समय हमारी सेना की कैसी दुर्दशा हो रही है-उस पर कैसी विपद आई है-फिर भी आप इसका इलाज नहीं करते; फिर भी आप चुप हैं । इससे तो साफ यही मालूम होता है कि आप पाण्डवों से मिले हुए हैं और जान बूझ कर उन्हें जिताना चाहते हैं। यदि हमें यह बात पहले से मालूम हो जाती तो हम यह युद्ध कभी ठानते ही नहीं।
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