पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२३४

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२०६ सचित्र महाभारत [दूसरा खण्ड आदि दस महारथियों की कुमक आ गई। उन लोगों ने अभिमन्यु को मदद- पहुँचाई और भीष्म के धावे को व्यर्थ कर दिया। हजार प्रयत्र करने पर भी भीष्म की दाल न गलाई गली। पाण्डवों की इस कुमक में राजा विराट का पुत्र उत्तर भी था। वह हाथी पर सवार था। उसने मद्र देश के राजा शल्य पर आक्रमण किया। बाण लगने से उसका हाथी बे-तरह बिगड़ उठा । वह शल्य के रथ पर जा टूटा और उसके अगले भाग को तोड़ कर घोड़ों को पैरों से कुचल डाला। शल्य बड़े योद्धा थे। उन्हें यह देख कर बड़ा क्रोध आया। वे उसी टूटे हुए बे-घोड़े के रथ पर बैठे रहे और शक्ति नाम का एक लोहे का हथियार उठा कर बड़े जोर से उत्तर के ऊपर फेंका । वह उत्तर के शरीर पर लगा और लोहे का कवच फाड़ कर भीतर घुस गया। उसकी चोट से विराटतनय उत्तर हाथी से नीचे गिर पड़ा। उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया और देखते देखते उसके प्राण निकल गये। तब मद्रराज शल्य ने तलवार उठाकर उत्तर के हाथी को मार डाला। फिर अपने टूटे हुए रथ को छोड़ कर कृतवर्मा के रथ पर वे सवार हो गये। ___ इसी कुमार उत्तर की बहन उत्तरा अभिमन्यु को ब्याही थीं। इससे अपने प्यारे सम्बन्धी के सुत की मृत्यु से पाण्डवों को बड़ा दुःख हुआ। उनके चेहरे उतर गये; सब पर उदासीनता छा गई। कौरवों को यह अच्छा मौका मिला। उन्होंने पाण्डवों की असंख्य सेना मार गिराई। इससे पाण्डवों के दल में चारों तरफ हाहाकार मच गया। इस समय प्रायः सन्ध्या हो गई थी। सूर्य्य डूबना चाहता था। कौरव लोग बड़ी ही भीषण मार मार रहे थे। इससे पाण्डवों के सेनापति अर्जुन ने लड़ाई बन्द करने के लिए आज्ञा दी। इस भयङ्कर युद्ध का पहला दिन इस तरह बीता। रात भर विश्राम करने के लिए दोनों तरफ की सेना अपने अपने डेरों में गई। उस दिन की जीत से दुर्योधन बड़े प्रसन्न हुए। पर युधिष्ठिर को बड़ा दुःख हुआ। भीष्म का प्रबल प्रताप देख कर वे डर गये कि कहीं हमारे पक्ष की हार ही न होती जाय । इससे अपने भाइयों को, कृष्ण को और अपने पक्ष के राजाओं को बुला कर वे कहने लगे :- हे वासुदेव ! देखिए, भाग जैसे तिनकों के ढेर को जलाती है, महापराक्रमी भीष्म उसी तरह हमारी सेना को जला रहे हैं। हमारी सेना में जितने अच्छे अच्छे वीर और अच्छे अच्छे धनुर्धर थे सबको घायल हो हो कर इधर उधर भागना पड़ा है । इसका क्या इलाज करना चाहिए ? हे यादव-श्रेष्ठ ! हमारे ही अपराध से हमारे भाइयों को शत्रुओं के शरों से घायल होना और मित्रों को मरना पड़ा है। इसकी अपेक्षा तपस्या करके अपना जीवन बिताना हमारे लिए अधिक अच्छा था। ___महात्मा युधिष्ठिर को इस तरह शोकाकुल देख कृष्ण ने उनसे इस प्रकार उत्साह पैदा करनेवाले वाक्य कहे :- हे भरत-कुल के दीपक ! तुमको इस तरह शोक करना उचित नहीं । तुम्हारे सभी भाई महा- बली और ऊँचे दरजे के धनुर्धारी हैं । हम सब लोग तुम्हारे हितचिन्तक और सहायक हैं । महारथी धृष्टद्युम्न तुम्हारे प्रधान सेनानायक हैं। फिर भला चिन्ता का क्या काम ? तब धृष्टद्यन ने भी वीरों के योग्य वचन कह कर युधिष्ठिर को धीरज दिलाया। इससे सबका उत्साह दूना हो गया और दूसरे दिन के युद्ध के लिए जी जान से तैयारियाँ होने लगी। दूसरे दिन सबेरा होते ही फिर युद्व की ठहरी। पाण्डवों ने अपनी सेना का फिर व्यूह बनाया-फिर उसकी किलेबन्दी करके मोरचे लगाये। उसके आगे सेनापति अर्जुन के रथ का कपि चिह्नवाला पताका फहराने लगा । व्यूह के दाहने-बायें सेनाध्यक्ष लोग हुए। उनकी सहायता के लिए बीच में और पीछे भसंख्य महारथी वीर, शस्त्रों से सज कर, खड़े हुए। पहाड़ों की तरह हाथी चारों तरफ व्यूह के