पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२२१

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१९३ दूसरा खण्ड] युद्ध की तैयारी हथियार, खजाना, सफरमैना और शस्त्र-वैद्यों आदि के साथ राजा युधिष्ठिर सेना के बीच में रहे। और और वीर युधिष्ठिर को बीच में डाल कर सेना के पिछले भाग में हो लिये। कुरुक्षेत्र में पहुँचने पर कृष्ण और अर्जुन ने अपने अपने शङ्ख बड़े जोर से बजाये । उन शङ्कों की भीषण ध्वनि सुन कर योद्धाओं के उत्साह का ठिकाना न रहा। वे लोग आनन्द से उछल पड़े और वे भी अपना अपना शङ्ख जोर जोर से बजाने लगे। इसके बाद युधिष्ठिर ने कुरुक्षेत्र में घूम कर सब जगह अच्छी तरह देखी; और, श्मशान, मन्दिर और बस्ती आदि से दूर हिरण्वती नामक पवित्र नदी के किनारे एक ऐसी चौरस जमीन पर सेना को उतरने की आज्ञा दी जहाँ अनाज, पानी, घास-चारा और ईंधन-लकड़ी आदि का सब तरह सुभीता था। ___ वहाँ कुछ काल आराम करके, अपने सहायक राजों को साथ लिये हुए, फिर उन्होंने कुरुक्षेत्र के मैदान की देख-भाल की। चारों तरफ़ देख सुन कर उन्होंने ऐसी जगह, जहाँ शत्रों के धावे का बहुत कम डर था, अपनी सेना की छावनी डालने का प्रबन्ध किया। धृष्टद्युम्न और सात्यकि ने सारी सेना को जुदा जुदा कई भागों में बाँट दिया। इसके बाद कृष्ण ने सेना के चारों ओर खाई खुदवा कर उसमें बहुत सी सेना गुप्त भाव से रख दी। पहले पाण्डवों के रहने के लिए शिविर तैयार किया गया। फिर और और राजों ने भी अपना अपना शिविर, जिसके लिए जो स्थान दिया गया उसमें, तैयार कराया। हर शिविर में हथियारों के बनाने, मरम्मत करने और उन्हें अच्छी हालत में रखनेवाले कारीगर और अच्छे अच्छे वैद्य नियत किये गये। धर्मराज की आज्ञा से उनमें असंख्य धनुष, बाण, प्रत्यञ्चा, कवच और सैकड़ों प्रकार के दूसरे अस्त्र-शस्त्र भी रक्खे गये। इसके सिवा तिन, भूसी, आग, घी, शहद, जल और घायलों के इलाज के लिए हर एक प्रकार की दवायें भी वहाँ इकट्ठी की गई। इस तरह सब प्रकार की तैयारी करके पाण्डव लोग युद्धारम्भ होने के दिन की राह देखने लगे। ____उधर हस्तिनापुर से कृष्ण के चले आने पर कर्ण, शकुनि और दुःशासन से दुर्योधन ने कहा:- देखो, कृष्ण को अपने काम में सफलता नहीं हुई। उन्हें उदास-मन पाण्डवों के पास लौट जाना पड़ा। इससे वे पाण्डवों को युद्ध के लिए जरूर ही उकसावेंगे । अतएव तुम्हें आलस्य छोड़ कर युद्ध की तैयारियां करनी चाहिए। कुरुक्षेत्र में कोई ऐसी जगह जाकर दूँदो जहाँ शत्र लोग सहज में हमला न कर सकें। फिर वहाँ पानी, लकड़ी और सब तरह के अस्त्र-शस्त्रों से परिपूर्ण कम से कम एक लाख शिविर स्थापित करो। वहाँ पर तुम एक ऐसा रास्ता भी बनाओ जिससे लड़ाई का सारा सामान लाया जा सके, और शत्र लोग उसके लाने में किसी तरह विघ्न-बाधा न पहुँचा सके । हे वीरगण ! तुरन्त ही तुम यह बात सब लोगों पर जाहिर कर दो कि कल ही हम युद्ध के लिए यहाँ से चल देंगे। कर्ण, शकुनि और दुःशासन उसी क्षण इन सब तैयारियों के करने में लग गये; और राजाज्ञा सुनाई जाते ही दुर्योधन के सहायक राजा भी अपने अपने स्थान से निकल कर अपनी अपनी सेना सजाने लगे। दूसरे दिन प्रात:काल ही राजा दुर्योधन खुद अपनी सेना की छावनी में गये। वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि ग्यारह अक्षौहिणी सेना युद्ध-यात्रा के लिए तैयार है । अच्छी तरह उन्होंने उसकी देख-भाल की और उसे ग्यारह भागों में बाँट दिया। हाथी, घोड़े और रथ आदि की अच्छी तरह जाँच करके जो उत्तम थे उन्हें आगे रक्खा, जो मध्यम थे उन्हें बीच में रक्खा , और जो निकृष्ट थे उन्हें सबसे पीछे रक्खा; युद्ध में काम आनेवाले जितने यन्त्र और जितने अस्त्र-शस्त्र थे, सबको सेना के साथ भेजने का प्रबन्ध किया। इसके सिवा दवायें श्रादि और भी अनेक प्रकार की जरूरी सामग्री इकट्ठा करा के उसके भी भेजे जाने का प्रबन्ध किया। फा०२५