दूसरा खण्ड १-शान्ति की चेष्टा पाण्डवों से यह कहने के लिए कि अब आपस में शान्ति हो जानी चाहिए, धृतराष्ट्र की आज्ञा से सञ्जय ने हस्तिनापुर से प्रस्थान किया । यथासमय वे उपप्लव्य नगर में पहुँचे । वहाँ युधिष्ठिर को देख कर सञ्जय बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रणाम करके युधिष्ठिर से कहा :- हे धर्मराज ! ईश्वर की कृपा से हम फिर आपको अच्छी दशा में देखते हैं। किसी बात की अब आपको तकलीफ नहीं। सब तरह की सहायता आपको प्राप्त है । वृद्ध राजा धृतराष्ट्र ने आपका कुशल- समाचार पूछा है । कहिए आप, आपके भाई और आपकी पत्नी, द्रपदनन्दिनी द्रौपदी, सब लोग अच्छे तो हैं ? युधिष्ठिर ने कहा :-हे सञ्जय ! आप तो अच्छी तरह हैं ? राह में कोई विन्न तो नहीं हुआ। इतने दिनों बाद राजा धृतराष्ट्र के कुशल-समाचार पाकर और तुम्हारे दर्शन करके हमें बड़ी खुशी हुई है। इस समय हमें ऐसा मालूम होता है, मानों हमने सभी कौरव-जनों के दर्शन किये । परम बुद्धिमान पितामह भीष्म तो कुशल पूर्वक हैं ? हमारे ऊपर उनका जो स्नेह था वह जाता तो नहीं रहा ? हम पर वे बड़ी कृपा करते थे। उस कृपा में कमी तो नहीं हुई ? द्रोण और कृप आदि हमाग बुरा तो नहीं चाहते ? क्या वे राजा धृतराष्ट्र और उनके पुत्रों को सलाह देते हैं कि सन्धि कर लो ? अर्जुन के बड़े बड़े वीरोचित काम और मेव-गर्जना के सदृश्य उनके गाण्डीव धन्वा की टङ्कार, कौरव लोग भूल तो नहीं गये ? सञ्जय ने उत्तर दिया :- आपने जिन लोगों की बात पूछी वे सब कुशल से हैं। आपके चचा धृतराष्ट्र ने जो संदेशा कहने के लिए हमें आपके पास भेजा है उसे सुनने की अब आप कृपा कीजिए । वृद्ध राजा धृतराष्ट्र जी से चाहते हैं कि आपस में सन्धि हो जाय। इसलिए कृपा करके आप भी इस बात को मान लीजिए। आपने हमेशा ही धृतराष्ट्र के पुत्रों के अपराध क्षमा किये हैं और क्रोध के वशीभूत न होकर सख की अपेक्षा धर्म ही को प्रधान माना है-उसी की तरफ हमेशा दृष्टि रक्खी है । इससे इस समय लाखों मनुष्यों की हिंसा निवारण करने का एकमात्र उपाय आप ही के अधीन है। आप चाहेंगे तो युद्ध रुक जायगा और महाभयङ्कर मनुष्य-संहार होने से बच जायगा। इस युद्र में एक तरफ तो महाबली भीम, अर्जुन और कृष्ण हैं। दूसरी तरफ भीष्म, द्रोण, कर्ण आदि महारथी हैं। इस दशा में चाहे जिसकी जीत हो चाहे जिसकी हार, परिणाम दोनों अवस्थाओं में महा दुःख-दायक होगा। इससे आप ही कोई ऐसा उपाय कीजिए जिसमें परस्पर सन्धि हो जाय। युधिष्ठिर ने कहा :-हे सञ्जय ! क्या हमने कोई ऐसी बात कही है जिससे यह सूचित होता हो कि हम युद्ध करना चाहते हैं ? फिर क्यों तुम युद्ध के डर से इतने भयभीत हो रहे हो ? यदि बिना
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