पहला खण्ड] पाण्डवों के अज्ञात वास की समाप्ति १५७ पहले दोनों योद्वा तरह तरह के दिव्य अस्त्र चलाने लगे। पर बड़ी देर तक युद्ध करने पर भी कोई किसी को पीड़ित न कर सका । कुछ देर में बाणों से लड़ाई होने लगी। उस समय अर्जुन की निपुणता और फुरतीलापन देख कर सब लोग चकित हो गये। भीष्म का धनुष तोड़ कर उन्होंने उन्हें अवसर दिये बिना ही उनकी छाती में बाण मारा। इससे महात्मा भीष्म रथ की पटिया पकड़ कर बड़ी देर तक अचेत रहे । उनकी यह दशा देख उनका सारथि रथ को युद्ध के मैदान से बाहर भगा ले गया। इसके बाद पहले हारे हुए योद्धा लोग बार बार युद्ध के मैदान में लौट कर कभी अलग अलग, और कभी धर्म-युद्व के खिलाफ दल बाँध कर, अर्जुन पर आक्रमण करने लगे। तब अर्जुन ने गाण्डीव पर चढ़ा कर प्रचण्ड गरज के साथ एक ऐसा सम्मोहन बाण छोड़ा कि सारे कौरव बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े। इस समय राजकुमारी उत्तरा की बात अर्जुन को याद आई । उन्होंने उत्तर से कहा :- हे उत्तर ! कौग्व लोग इस समय बेहोश पड़े हैं। अतएव ग्थ से उतर कर तुम उनके कपड़े राजकुमारी के लिए ले आवो। देखो सावधान रहना । भीष्म इस सम्मोहन अस्त्र का तोड़ जानते हैं। इसलिए उनके घोड़ों के बीच होशियारी से जाना । तब उत्तर अचेत पड़े हुए वीरों के बीच में जाकर द्रोण और कृप के सफेद कपड़े, कर्ण के पीले कपड़े और अश्वत्थामा तथा दुर्योधन के नीले कपड़े लेकर फिर अपने रथ पर जा चढ़े और घोड़ों की गम थाम गायों के पीछे नगर की ओर चले। इतने में कौरवों को कुछ कुछ होश आने लगा। दुर्योधन ने देखा कि अर्जुन चुपचाप गायें लिये जाते हैं। इससे उन्होंने बड़ी व्याकुलता से कहा :- हे योद्वागण ! तुमने अर्जुन को क्यों छोड़ दिया ? उसे ऐसा घायल करो कि अपने घर न लौट सके। तब भीष्म ने हँस कर कहा :- ___ हे दुर्योधन ! तुम्हारी बल-बुद्धि इस समय कहाँ गई है ? जब तुम लोग बेहोश पड़े थे तब महावीर अर्जुन ने कोई निर्दयता का काम नहीं किया। तीनों लोक पाने के लिए भी वे धर्म नहीं छोड़ते। इसी लिए इस युद्ध में तुम लोग मारे जाने से बच गये हो। अब शेखी मारना तुम्हें शोभा नहीं देता। अर्जुन गायें लेकर जायें । तुम जीत जी हस्तिनापुर लौट चलो, यही बड़े सौभाग्य की बात है । पितामह की यह यथार्थ बात सुन कर दुर्योधन ने ठंडी साँस ली और फिर कुछ न बोल । विराट के नगर को लौटते समय अर्जुन ने उत्तर से कहा :- हे कुमार ! यह बात सिर्फ तुम्हीं जानते हो कि पाण्डव लोग तुम्हारे पिता के आश्रय में रहते हैं। परन्तु उचित समय आने के पहले इसे प्रकट करना मुनासिब नहीं। इसलि र तुम सबसे यही कहना कि युद्ध में तुम्ही जीत कर गायें लौटा लाये हो। उत्तर ने कहा :- हे वीर ! किसी को भी विश्वास न होगा कि जो काम आपने किया है वह हमसे हो सकता है । जो हो, आपकी आज्ञा पाये बिना यह बात हम पिता से भी न कहेंगे। अर्जुन ने कहा :--अब ग्वाले नगर में जाकर आपकी जीत का समाचार सुनावें । हम तीसरे पहर चलेंगे। क्योंकि हमें बृहन्नला का वेश फिर धारण करना पड़ेगा। इधर पाण्डवों के साथ विराटगज त्रिगर्तो को हरा कर प्रसन्नतापूर्वक अपने नगर लौट आये और शीघ्र ही अन्त:पुर में पहुँचे। वहाँ यह खबर पाकर कि उत्तर अकेले ही कौरवों से लड़ने गये हैं वे बड़े व्याकुल हुए। उन्होंने यो द्राओं को आज्ञा दी कि वे सारी सेना लेकर उत्तर की सहायता के लिए तुरन्त जायँ । उन्होंने कहा :-
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