१५६ सचित्र महाभारत [पहला खण्ड कौरवों ने कहा :-प्राचार्य की बराबरी अर्जुन के सिवा और कोई न कर सकता था। क्षत्रिय धर्म कैसा भयानक है कि अजुन को गुरु के साथ लड़ना पड़ा। इधर दोनों वीर सामने आकर एक दूसरे पर बाण चलाने और घायल करने लगे। अर्जुन का फुरतीलापन, उनका लक्ष्य-भेद-कौशल, और बहुत दूर से बाण मारने की योग्यता देख कर द्रोण का बड़ा आश्चर्य हुश्रा । धीरे धीरे क्रोध में आकर अर्जुन दोनों हाथों से इतनी तेजी से बाण बरसाने लगे कि वे कब बाण उठाते हैं और कब फेंकते हैं यह कोई भी न देख सकता था। प्राचार्य को अर्जुन के बाणों से छिप गगा देख सैनिक हाहाकार करने लगे। तब अश्वत्थामा एकाएक अर्जुन की ताफ दौड़े। इससे उनका ध्यान दूसरी तरफ चला गया। फल यह हुआ कि द्रोणाचार्य को वहाँ से हट जाने का मौका मिल गया। इसके बाद अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध छिड़ गया। सुयोग पाकर महातेजस्वी प्राचार्य्यपुत्र ने एक धारदार बाण से गाण्डीव की डोरी काट डाली। यह देख कर कौरव लोग अश्वत्थामा को धन्य- ध य कहने लगे । परन्तु अर्जुन ने गाण्डीव पर झटपट दूसरी डोरी चढ़ा दी और अश्वत्थामा को फिर अग्ने ऊपर वार करने का मौका न दिया। उन्होंने क्रछ हुए सर्प के समान इतने बाण अश्वत्थामा पर बर पाये कि उनको रोकते रोकते अश्वत्थामा के सारे अस्त्र-शस्त्र चुक गये । इस बीच में थोड़ा सा विश्राम लेकर कर्ण फिर लड़ाई के मैदान में आये । यह देख कर क्रोध से भरे अर्जुन ने अश्वत्थामा को तो छोड़ दिया; कर्ण के सामने उपस्थित होकर वे बोले :- हे कर्ण ! कौरवों की सभा में तुमने बड़े घमण्ड से कहा था कि हमारे बराबर योद्धा दुनिया भा में नहीं है ! सो आज हम तुम्हें बता देंगे कि तुम कितने पराक्रमी हो। इससे तुम दूमर का अपमान फिर कभी न करोगे। तुमने आज तक जितने कठोर वचन कहे और जितने दुष्कर्म किये हैं उन सबका पूरा बदला आज तुम्हें मिल जायगा । रे दुगत्मा ! जिस क्रोध को हम बारह वर्ष तक वनवास में रोके रहे हैं उसे आज प्रत्यत देख । कर्ण ने उत्तर दिया :- हे अर्जुन ! जो कुछ तुमने कहा उसे कर दिखाओ। वृथा बकवाद से क्या लाभ ? तुम अपने को स्वतन्त्र समझते हो, यह तुम्हारी भूल है। अब तक तुम प्रतिज्ञा के बन्धन में जैसे बँध थं वैसे ही अब भी हमारे बल-विक्रम सं अपने को बँधा हुआ समझी। लड़ने की यह तुम्हारी इच्छा शीघ्र ही दूर हो जायगी। अर्जुन ने कहा :-हे सारथि-पुत्र ! तुम इसी युद्ध के मैदान से अभी भाग गये थे; तिस पर भी तुम्हारा शेखी मारना न गया । तुम सा निर्लज्ज दुनिया में और कहीं न होगा। यह कहते कहते वीर अर्जुन ने कवच को तोड़ कर भीतर घुम जानेवाले बाण बरसाना प्रारम्भ किया। उन्होंने बाण से कर्ण के तरकश की डोरी काट डाली। तब कर्ण ने दूसरी तरकश से बाण लेकर अर्जुन के हाथ पर माग । इमसे थोड़ी देर के लिए उनकी मुट्ठी ढीली पड़ गई। पर तुरन्त ही क्रोध में आकर उन्होंने कर्ण का धनुष काट डाला और उनके फेंके हुए अन्यान्य अस्त्रों को व्यर्थ कर दिया। उन्होंने कर्ण के सारे शस्त्र खर्च करा दिये । इसके बाद, कौरवों की सेना आने के पहले ही अर्जुन ने कर्ण के घोड़ों का नाश करके उनकी छाती में एक तेज़ बाण मारा। इससे कर्ण व्याकुल होकर ज़मीन पर गिर पड़े और बेहोश हो गये । जब थोड़ी देर बाद होश में आये तब पीड़ा से अधीर होकर युद्र-क्षेत्र छोड़ भागे। । ___ इस बीच में दुर्योधन आ गये। यह देख कर कि अर्जुन को जीतना बहुत कठिन है उन्होंने भाइयों के साथ दल बाँध कर अर्जुन पर आक्रमण किया। पर महावीर अर्जुन ने सेना-सहित दुर्योधन आदि को सहज ही में मार भगाया। अन्त में उन्होंने पितामह भीष्म का सामना किया।
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