पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१७९

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१५५ पहला खण्ड ] पाण्डवों के अज्ञात वास की समाप्ति चलने से जो गुबार उड़ रहा है उसी के साथ वह दुरामा ज़रूर भागा जाता है। इसलिए इन महारथियों को छोड़ कर उधर ही शीघ्र ग्थ ले चलो। उत्तर ने बड़े यत्न से रास साध कर जिधर दर्योधन जाते थे उधर ही घोड़े दौड़ाये । कौरव लोग अजुन का मतलब समझ गये । इमसे उनको रोकने के लिए दौड़े। अर्जुन ने अपने तेज बाणों से भैनिकों का बेहद पीड़ित करके पहले गायों को घर लौटा दिया। फिर दुर्योधन पर आक्रमण करने का अवसर हूँढ़ने लगे। मौक़ा देखते ही उन्होंने उत्तर से कहा :- हे राजपुत्र! इस रास्ते से जल्दी चलो। इससे सेना के बीच में पहुँच जायेंगे। यह देखो, मल हाथी की तरह कण हमसे लड़ने आते हैं । इमलिए पहले इन्हीं की तरफ़ चलो। ज्यों ही राजकुमार उत्तर उधर चले त्यों ही बहुत से सहायकों के साथ कर्ण अर्जुन पर षाण बरसाने लगे। अर्जुन ने रुष्ट होकर पहले तो विकर्ण को ग्थ से गिरा दिया, फिर अधिरथ के पुत्र अर्थात् कर्ण के भाई को मार डाला। यह देख कर कर्ण को बड़ा क्रोध श्राया। वे सामने आकर लड़ने लगे। अन्य कौरव लोग ठिठक कर यह भयङ्कर युद्ध देग्वने लगे। पहले जब कर्ण ने अर्जुन के फेंके हुए बाणों को गम्ते ही में रोक कर उनके घोड़ी को घायल किया तब वे लोग बड़े अानन्द से ताली देकर और शङ्ख भेरी आदि बजा कर कर्ण की प्रशंसा करने लगे। इससे अर्जुन सोकर जागे हुए सिंह की तरह क्रोध से जल उठे । उन्होंने हजारों बाण चला कर कर्ण के रथ को ढक दिया और एक तेज़ बाण से उन्हें घायल कर दिया। फिर अनेक प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्रां से कर्ण की बाँह, सिर, जाँव, मस्तक और गर्दन को घायल किया। इससे कर्ण प्रायः मूर्छित हो गये और लड़ाई का मैदान छोड़ कर भागे। कर्ण के भागने पर दुर्योधन से न रहा गया । वे अपनी सेना लेकर अर्जुन पर आक्रमण करने के लिए युद्ध के मैदान की ओर लौट । शत्र की सेना से अपने को घिरा हुआ देख अर्जुन ने पहले कृपा- चार्य पर आक्रमण करने की इच्छा की । इसलिए उन्होंने उत्तर को उधर ही चलने की आज्ञा दी। कृप ने अर्जुन के बाणों के टुकड़े टुकड़े करके पहले उनको घायल किया। इससे अर्जुन ने पहले ही की तरह उत्तेजित होकर कृप के घोड़ों को अपने शरसमूह से छेद दिया। इसलिए घोड़े भड़क कर इस तरह उछलने कूदने लगे कि कृपाचार्य रथ से गिर पड़े। यह देख कर अर्जुन ने कृप पर और बाण न चलाये । गिरे हुए शत्रु को मारना उन्होंने अनुचित समझा । पर ज्यों ही वे रथ पर फिर चढ़े त्यों ही फुरतीले अर्जुन ने उनका धनुष काट कर उनके घोड़े और सारथि को मार डाला । तब कृप की विपद को देख कर अन्य योद्वाओं ने उनको वहाँ से हटा दिया और अर्जुन का मुकाबला करने दौड़े। इसके अनन्तर अर्जुन की आज्ञा से विराट के पुत्र उत्तर ने द्रोणाचार्य की तरफ रथ चलाया। बराबर बलवाले गुरु और शिष्य का मुकाबला सब लोग विस्मित होकर देखने लगे और सेना में बड़े जोर से शङ्खध्वनि होने लगी। गुरु को देख कर अर्जुन ने प्रसन्नतापूर्वक उन्हें प्रणाम किया और विनीत भाव से कहने लगे :- हे आचार्य ! वनवास करा कर हमें बड़े बड़े कष्ट दिये गये हैं। इस कारण अब हमारी गिनती कौरवों के शत्रओं में है। अतएव आप हम पर मष्ट न हृजिएगा। यदि आप पहले हम पर वार न करेंगे तो हम आपसे युद्ध न कर सकेंगे। इसलिए पहले आप ही बाण चलाइए । अर्जुन के इच्छानुसार द्रोण ने जो बाण चलाया तो अर्जुन ने रास्ते ही में उसके टुकड़े टुकड़े कर डाले। इस तरह द्रोण और अर्जुन की लड़ाई शुरू हुई। दोनों ही महारथी थे; दोनों ही दिव्य अस्त्र चलाने में निपुण थे। सब लोग चकित होकर उनके अद्भुत काम देखने लगे।