पहला खण्ड ] अज्ञात वास घिसे गये हैं कि नहीं ? कहीं राजा अप्रसन्न तो न होंगे ? इस प्रकार की शङ्काओं से मेरा हृदय सदा ही कपा करता है। क्योंकि मेरे सिवा और किसी का घिसा हुआ चन्दन राजा पसंद नहीं करते। इस तरह अपने दुखों का वर्णन करके द्रौपदी ने भीम की तरफ देखा और रोने लगी। इससे भीम का कलेजा फटने लगा। तब उसने फिर ठंडी साँस भर कर कहा--मालूम होता है कि पूर्व जन्म में मैंने देवताओं का कोई बडा भारी अपराध किया था। इसी से इतने क्लेश पाकर भी जीती हूँ। काम करते रहने के कारण द्रौपदी का कठोर हाथ पकड़ कर और मुँह पर बहते हुए आँसू पोंछ कर भीमसेन कहने लगे :- प्रिय ! अब तुम आगे और कुछ न कहो । तुमने धर्मगज का जा तिरस्कार किया है उस वे यदि सुन लेंगे तो अवश्य ही प्राण त्याग देंगे। उनके मरने पर अर्जुन, नकुल या महदेव कोई भी जीने न रह सकेंगे। उनकं न रहन सं हम भी जीवन धारणा न कर सकेंगे। द्रौपदी ने कहा :-नाथ ! मैंन राजा का निरस्कार नहीं किया। बात केवल इतनी ही है कि दुःसह दुःख के कारण मेरे आँसुओं का बहना नहीं सकता था । जो हो, अब बीती हुई बातों की पालो- चना करना व्यर्थ है। दु:ख सदा एक सा नहीं बना रहता । सभी दुःखा का अन्त हाता है। यह समझ कर तुम्हारी ही तरह मैं भी समय की प्रतीक्षा करूंगी। पर इस समय जो कुछ करना उचित हो करो। कामान्ध कीचक मुझसे न कहने योग्य बातें सदा कहता है और उसके लिए मेरा अपमान करता है। बालो उसे क्या दण्ड दोगे ? जब मैं उसे अपने गन्धर्व-पतियों के क्रोध का डर दिखाती हूँ तब वह सिर्फ ज़ोर से हम देता है । विराटगज भी उस दण्ड नहीं दे सकतं । यदि तुम लोग कलङ्कित न होना चाहो तो इस समय अपनी स्त्री की रक्षा करो। इस दुष्ट ने तुम लोगों के सामने ही मेरे लात मारी। और क्या कहूँ, यदि कल सबरे तक वह पापी जीवित रहा तो मैं विप खाकर मर जाऊँगी। यह कह कर भीमसेन की छाती पर अपना मुँह रख कर द्रोपदी फिर रोने लगी। तब भीमसन ने द्रौपदी का आलिङ्गन करके उसके आँसू पेछि और उसे धीरज दिया। फिर कीचक पर बड़ा क्रोध करके अपना हाट दाँतों से काटते हुए बाले:- ह द्रौपदी ! तुमने जो कुछ कहा, हम जरूर वही करेंगे। तुम इस दुष्ट को रात के समय निर्जन नाट्यशाला में किसी बहाने लिवा लाना । हम वहाँ उस उचित दण्ड देंगे । पर उसके साथ तुम्हारी जा बातचीत हो उसे कोई न जानने पावे। भीमसेन की बात सुन कर द्रौपदी को धीरज़ हुआ। कीचक को फंसाने का उपाय सोचने सोचते वह अपने घर लौट गई। भीमसेन बड़ी अधीनता से समय की प्रतीक्षा करने लगे। दूसरे दिन सबेरे कीचक द्रौपदी के पास फिर आया और पूर्ववत् प्रस्ताव करके कहने लगा । हे डरपोक ! देखो जब हमने तुम पर कोप किया तब विराटराज भी तुम्हें न बचा सके । विराट तो मम्यदेश के नाम मात्र राजा हैं । असल में राज्य तो हमीं करते हैं-मत्स्यदेश में हमाग ही एकाधिपत्य है। यदि तुम हमें प्यार करने लगोगी तो हम खुद तुम्हारे दास हो जायँगे। इसलिए हमारी बात मान लो। मानों कुछ कुछ राजी होकर द्रौपदी कहने लगी :-- सबके सामने ऐसी बातें करते मुझे बड़ा डर लगता है। इसलिए यदि तुम आज रात को निर्जन नाट्यशाला में मिला तो मैं तम्हारी बात मान लूँगी। पर यह हाल किसी को मालूम न होने पावे। यह बात सुन कर दुष्ट कीचक बहुत प्रसन्न हुआ। उसके दिल की कली कली खिल उठी। वह , खुशी खुशी अपने घर गया। इधर द्रौपदी भी जल्दी से भीमसेन के पास आई और उनसे सब हाल कह सुनाया। ___यह समझ कर कि अब तो मनोकामना सिद्ध हो गई, रात को कीचक सुगन्धित माला आदि विहार की सामग्री से अपने को सजाने लगा। उसका मन इतना चञ्चल हो रहा था कि वह थोड़ा
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