सचित्र महाभारत [पहला खण्ड तो यह है कि तुम हमस विवाह करके हमारी स्वामिनी बना। हे सुहासिनी ! तुम्हारे लिए हम पहले की सारी प्रियतमाओं को छोड़ देंगे । वे सब तुम्हारी दासी होकर रहेंगी। हम भी तुम्हारे दास बन कर तुम्हारी शुश्रूषा करेंगे। द्रौपदी ने कहा :-हे सेनापति ! मैं नीचवंश में उत्पन्न सैरिन्ध्री हूँ। मैं एक निगाह से आपके द्वारा देखी जाने योग्य भी नहीं । इसके सिवा मैं दूसरे की पत्नी हूँ। इसलिए धर्म का खयाल करके आप ऐसी बात अब कभी न कहिएगा। पर कीचक द्रौपदी पर ऐस लट्ट, हो रहे थे कि उसको दूसरे की स्त्री जान कर भी चुप न रह सके । वे फिर कहने लगे :-- हे सुन्दरी ! हम तुम पर अत्यन्त मोहित हैं और तुम्हारे वश में हैं। इसलिए तुम्हें उचित नहीं कि हमारी बात न मानो । जो पति तुमसे दासी का काम करवाता है उस छोड़ दो और हमारे अतुल ऐश्वर्य की स्वामिनी बना। तब द्रौपदी ने रुष्ट होकर कहा :-- हे सारथि-पुत्र ! होश में आओ ! मैं महा बलवान् गन्धर्वो की स्त्री हूँ। यदि व ऋद्ध होंगे तो तुम कदापि न बच सकोगे। इसलिए मुझे पान की आशा छोड़ दा। सुमार्ग पर चल कर जीवन की रक्षा करो। जब दुरात्मा कीचक का मनोरथ सिद्ध न हुआ तब वह सुंदणा के पास आकर बोला :-हे बहन ! ऐसा यत्र करो जिसमें यह अपूर्व लावण्यवती युवती हमारी हो जाय। यदि ऐसा न होगा तो हम, सच कहते हैं, प्राण दे देंगे। भाई की ऐसी दुरवस्था दग्य और उसका विलाप मुन कर गनी का दया आ गई । उन्होंने कहा :- है कीचक ! मैं एक उपाय बताती हूँ। तुम त्यौहार के दिन मद्य और ग्वान-पीने की चीजे तैयार रखना । मैं उन्हें लाने के बहाने सैरिन्ध्री को तुम्हारे पास भेजूंगी । उस समय एकान्त में तुम इच्छानुसार वचनों के द्वारा उसे राजी कर लेना। बहन के धीरज देने से कीचक कुछ शान्त हुए। उनकी सलाह के अनुसार उन्होंने अनेक प्रकार के व्यञ्जन और राजों के पीने योग्य बढ़िया शराब तैयार करके सुदंष्णा को खबर दी । तब द्रौपदी को बुला कर रानी ने कहा :- सैरिन्त्री ! हमें बड़ी प्यास लगी है। तुम कीचक के घर से अच्छी शराब ले आओ। द्रौपदी ने कहा :-हे रानी ! मैं कीचक के घर कभी नहीं जा सकती। मुझे मालूम हो गया है कि वह कितना निर्लज्ज है। मैं आपसे पहले ही कह चुकी हूँ कि मैं अपमानित होकर आप के घर में न रहूँगी। इससे इस काम के लिए किसी और दासी को आप भेजें। सुदेष्णा ने कहा :-हं कल्याणी ! तुम्हें तो हम भंजती हैं। कीचक तुम्हारा अपमान क्यों करेंगे ? यह कह उन्होंने द्रौपदी के हाथ में एक सोने का प्याला वस्त्र में छिपा कर रख दिया। बेचारी द्रौपदी जाने को लाचार हुई। ___ आँखों में आँसू भरे हुए वह डरती डरती चली और चौकन्ना हिरनी की तरह घबराई हुई कीचक के घर के पास पहुँची। पार जाने की इच्छा रखनेवाले जैसे नाव पाकर आनन्दित होते हैं वैसे ही दुरात्मा कीचक भी द्रौपदी को आते देख बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने कहा :- प्रिये ! तुम्हारे आने से हमें जैसी प्रसन्नता हुई है उसे हम कह नहीं सकते । आज का दिन हमारे लिए बड़ा ही शुभदायक है । देखो, तुम्हारे लिए हमने अनेक देशों से सोने के हार, कड़े, बाजूबन्द,
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