पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१५८

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सचित्र महाभारत [पहला खड उत्तर में अर्जुन ने कहा :- हे धर्मगज ! आप ठीक कहते हैं कि धनुष की प्रत्यञ्चा के चिह्नवाली अपनी बांह और युद्र के गर्व से भग हुआ अपना हट्टा कट्टा शरीर छिपाना हमारे लिए सहज नहीं । इससे हमने इगदा किया है कि माथे में वणी धारण करके, कानों में कुण्डल पहन कर, और बाजूबन्दों से अपनी बाँहों के चिह्न छिपा कर हम अपना नाम बृहन्नला रकग्वें और यह कहें कि हम नर्तक हैं-कथिक हैं। जब हम इन्द्रलोक में थे तब हमने गाना-बजाना और नाचना अच्छी तरह सीख लिया था। इसलिए यदि स्त्रियों हम को नाचना-गाना आदि सिखायेंगे तो वे निश्चय ही हमाग विशेप आदर करेंगी। पूछने पर हम भी कहेंगे कि युधिष्ठिर के यहाँ हम द्रौपदी की सेवा में नियुक्त थे। हे धर्मराज ! इस प्रकार गग्व में छिपी हुई आग की तरह हम विगट के घर में सुग्व से विहार कर सकेंगे। तब युधिष्ठिर ने कहा :- हे नकुल ! तुम्हारी उम्र सुग्व भागने योग्य है और तुम सुकुमार भी हो। तुम कौन सा काम कर सकोगे? नकुल ने कहा :-महागज ! हम घोड़ों का सदा से प्यार करते हैं। उनको मिग्वाने और उनकी दवा-दार करने का हमें अच्छा अभ्याम है। इसलिए हम ग्रन्थिक नाम रख कर घोड़ों के दरोगा बनने की प्रार्थना करेंगे। यह काम हमें पमन्द भी है; और इसके द्वारा हम गजा को मन्तुष्ट भी कर मकेंगे । पूछने पर हम भी कहेंगे कि हम गजा युधिष्ठिर के अम्तबल के इम्पेक्टर थे। पूछने पर सहदव ने कहा :- हे गजन् । जब आप हमें गायों की दग्व भाल करने के लिए भेजते थे तब हमने गायों का दुहना, पालना और उनके शुभाशुभ लक्षण पहचानना मीख लिया था। इससे हमारे लिए चिन्ता न कीजिए । हम अपना नाम तन्त्रिपाल ग्वग्वेग और गायों की सेवा करके निश्चय ही गजा को सन्तुष्ट कर सकेंगे। अन्त में दुःश्वविह्वल हाकर धर्मगज कहने लगे :-- भाई ! हम लोग द्रौपदी का जी से पालन, पापण और मम्मान करते हैं। वह हमें प्राणों से भी अधिक प्यारी है । इसलिए उसे दूसरे की सेवा करते हुए हम कैसे देख सकेंगे ? जन्म भर औरों ने उसकी संचा की है। सिंगार करने के सिवा कोई काम उसने अपने हाथ से नहीं किया। इसलिए प्रियतमा द्रौपदी कौन काम करेगी ? द्रौपदी ने कहा:--महाराज ! कंबी-चोटी करने, महावर लगाने, तथा और अनेक प्रकार के सिंगार करने के लिए अमीरों के यहाँ स्त्रियाँ नौकर रहती हैं। इसलिए मैं यह कहूँगी कि मैं द्रौपदी की दासी थी; मरा नाम मैरिन्ध्री है; कंघी-चोटी करने में मैं बड़ी चतुर हूँ। यह कह कर मैं रानी सुदेष्णा की नौकरी कर लूंगी। यह काम अनाथा और साध्वी स्त्रियाँ ही करती हैं। इसलिए ऐसा करना मेरे लिए अनुचित न होगा। यह निश्चय है कि रानी मेरा आदर करेंगी। मेरे लिए आप दुःख न कीजिए। युधिष्ठिर ने कहा :-हे द्रौपदी ! तुमने उत्तम ही काम करने का निश्चय किया है। किन्तु राज- भवन विपदों का घर होता है । इसलिए सावधान रहना; कोई तुम्हारा अपमान न कर सके। फिर वे सबसे कहने लगे :- यह तो स्थिर हो गया कि हम लोग किस तरह गुप्त रहेंगे और कौन कौन काम करेंगे; अब पुरोहित धौम्य, हमारे नौकर चाकर, और द्रौपदी की दासियाँ द्र पदराज के यहाँ जाकर हम लोगों के अज्ञात वास समाप्त होने की प्रतीक्षा करें । इन्द्रसेन आदि सारथि लोग खाली रथों को लेकर शीघ्र ही द्वारका चले जाय और वहाँ उनकी रक्षा करें। यदि कोई पूछे तो सब लोग कह दें कि पाण्डव हमें द्वैत वन में छोड़ कर कहीं चले गये; वे कहाँ हैं; हम नहीं जानते ।