पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१३५

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पहला खण्ड] पाण्डवों का वनवास ११३ तब युधिष्ठिर की आधा से भीम ने अपने पुत्र घटोत्कच को याद किया। वह तुरन्त आगया और आते ही उसने हाथ जोड़ कर गुरुजनों को प्रणाम किया। भीम प्रसन्नता से उसका आलिङ्गन करके बोले :- पुत्र ! तुम्हारी माता बहुत थक गई है और चल नहीं सकती। इसलिए उसे कंधे पर चढ़ा कर आकाश में हमारे पीछे पीछे चले।। घटोत्कच ने कहा :-हे पिता ! आप चिन्ता न कीजिए। हम अपने साथी और बहुत से राक्षसों को बुलाते हैं । हम खुद माता को ले चलेंगे और वे आप लोगों को ले चलेंगे। ____ इसके बाद अपने गुरुजनों के भक्त घटोत्कच के आज्ञाकारी राक्षस आकर दल बल के साथ पाण्डवों को उठा ले चले । उन्होंने शीघ्र ही बदरिकाश्रम के पासवाले एक अत्यन्त रमणीय वन में सबको उतार दिया। वहाँ फलों के बोझ से झुके हुए पेड़ों की घनी छाया में, जहाँ चिड़ियाँ चहचहा रही थीं, सबने थकावट दूर की। गङ्गातट के उस पवित्र स्थान में, बदरिकाश्रम-निवासियों के जप तप में सहायता करतं हुए, सब लोग बड़े सुख से रहने लगे। __यह देख कर कि नाना प्रकार के प्राकृतिक सौन्दर्य अवलोकन करके द्रौपदी को बड़ा आनन्द मिलता है; और मौज में आकर वह जल थल में सब जगह तरह तरह के खेल खेलती है, पाण्डव लाग सदा बड़े प्रसन्न रहते थे। कुछ दिनों बाद एक दफे सूर्य के समान हजार पत्तोंवाला एक कमल हवा के झोंके से उड़ कर अकस्मात् द्रौपदी के पास आ गिरा। उसने बड़ी प्रसन्नता से उसे उठाया और हँस कर भीम से कहा :- दखा, यह सुन्दर फूल फैसा सुगन्धित है। मैं इसे धर्मराज को उपहार दूंगी। हे भीम ! यदि मुझे तुम प्यार करत हो तो इस तरह के बहुत से फूल ला दो। मस्त चकोर के से नेत्रोंवाली द्रौपदी यह कह कर धर्मराज के पास चली गई । महाबलि भीमसन, प्रियतमा की इच्छा पूरी करने के इरादे से, हथियार लेकर हवा का रुख देख कर फूलों की तलाश में पहाड़ पर चढ़ने लगे । उनको बहुत दिन तक न देखने से शायद युधिष्ठिर को चिन्ता हो, इस डर से भीम लताओं को हटाते, पेड़-पौधों को तोड़ते फोड़ते, और पहाड़ के अगले भाग पर तेज निगाह रखते हुए बड़ी जल्दी जल्दी चलने लगे। मुँह में हरी हरी घास दबाये हुए निडर हिरन उनको बड़ी उत्सुकता से देखने लगे। कुछ देर बाद भीम केले के एक बड़े भारी वन में पहुँचे। वन के बीच के एक तङ्ग रास्त से चलते हुए जब वे केलों को उखाड़ कर इधर उधर फेंकने लगे तब वन में रहनेवाल बन्दर, मृग आदि डर कर चारों तरफ भाग गये । किन्तु एकाएक भीमसन ने देखा कि एक बड़ा भारी बूढ़ा बन्दर रास्ता रोके हुए सो रहा है । निडर भीम उसके पास गये और इतने ज़ोर से गरजे कि सब पशु-पक्षी डर गये। यह सुन कर उस बन्दर ने दोनों आँखें थोड़ी थोड़ी खोली और भीम की तरफ़ गर्व से देख कर कहा :- हम सुख से सो रहे थे। क्यों तुमने हमें जगा दिया ? अब हमको अधिक तङ्ग करके व्यर्थ अपनी मौत न बुलाना। भीम बोले :-चाहं हमारी मृत्यु हो, चाहे और को विपद आवे, इस विषय में हम तुम्हारा उपदेश नहीं लेना चाहने । इस समय हमें रास्ता दो, हमारे हाथों को वृथा कष्ट न देना। बन्दर बाला :-हम वृद्ध हैं, इससे उठ नहीं सकते। हमारी पूँछ रास्ते से हटा कर चले जाव । भाम न गव स साचा था कि वन्दर की पूंछ पकड़ कर उसे दूर फेंक देंग। पर जोर से खींचन पर भी जब वे पूँछ को जरा भी न हटा सके तब बड़े विस्मित हुए। भीम ने लज्जा के मारे सिर मुका लिया और बन्दर के सामने ग्य? होकर तथा हाथ जोड़ कर पूछा :- फा० १५