११० सचित्र महाभारत [पहला खण्ड यह कह कर देवर्षि नारद ने कितने ही तीर्थों की कथायें सुनाई। इससे पाण्डव लोग उनके दंग्या के लिए और भी उत्सुक हो उठे । कुछ देर टहर कर नारद युधिष्ठिर मे बिदा हुए। उनके जाने के थाई ही देर बाद इन्द्र के अाजानुसार महर्षि लोमश अर्जुन की ग्वबर लेकर आये। अाग्रहपूर्वक युधिष्ठिर के पूछने पर वे कहने लगे :- हं युधिष्ठिर ! हम इन्द्र की आज्ञा से तुम्हें खुशखबरी सुनाने आये हैं । तुम लोग द्रौपदी समेत एकत्र होकर सुनो। इन्द्र की कृपा से यम, वरुण और कुबेर आदि देवताओं ने अर्जुन को अच्छे अच्छे दिव्य अत्र दिये हैं और उनके चलान की तरकीब भी बताई है। मिर्फ यही नहीं, अर्जुन ने तपस्या करके खुद महादेव जी के दर्शन किये और उनसे पाशुपत अन्त्र प्राप्त किया है। इसके बाद इन्द्र के बुलाने पर उन्होंने देवकार्य करने के लिए स्वर्ग जाकर शान्तिलाम किया है। वहां गाने बजाने से सम्बन्ध रखन- वाली गान्धर्व विद्या भी सीखी है। उसमें उन्होंने अच्छी निपुणता प्राप्त की है। इस समय वे वहाँ आदर के माथ रहते हैं। इन्द्र ने यह भी कहा है कि महज में न टूटनेवाले कग के कवच के लिए जो तुम शङ्का करत हो सा उसके ताड़ने के लिए वे खुद यन्न करते रहेंगे । ये आनन्द देनेवाली बातें द्रौपदी सहित पाण्डव लोग बड़े आनन्द से सुनते रहे। इसके बाद गति के अनुमार लोमश की पूजा करके उन्होंने उनके साथ तीर्थों में घूमन की बान चलाई। महर्षि ने इम बान को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया । उन्होंन कहा :---- हं गजन् ! हमने दो बार सब तीर्थों के दर्शन किये हैं। तुम्हारे माथ तीसरी बार उनकी यात्रा करेंगे । तुम्हें अच्छे अच्छे स्थानों के दर्शन करा कर अन्त में दुर्गम गन्धमादन पवत पर चलेंगे। लौटती दफे अर्जुन उसी गस्त आवेंगे। इसलिए उम रमणीक स्थान में तुम लोग बड़े आराम से उनके आने की प्रतीक्षा कर सकोगे। किन्तु महाराज ! यात्रा प्रारम्भ करने के पहले तुम्हें अपने माथिया को कम कर देना होगा। क्योकि बहुत आदमियों के माथ आगम मे न घम मकंग । यह बात सुन कर युधिष्ठिर ने आज्ञा दी : . . जा भिक्षुक ब्राह्मण अच्छे अच्छे भाजन चाहत हैं या जो थकावट और सर्दी-गर्मी नहीं मह मक व नीर्थयात्रा का विचार छोड़ कर अपने अपने घर लौट जायें । जा पुरवासी तथा देशवासी हमारे ऊपर अनुरक्त होने के कारण अब तक हमारे साथ रहे हैं। अब धतराष्ट्र के पास लोट जाय । यदि वे अपने यहाँ न रहने दें तो पारुचालराज निश्चय ही उनकी रक्षा करेंगे। क्योंकि. हमें विश्वास है, वे जरूर ही हमारे प्रणयानुरोध को मान लेंगे। इन लोगों के चले जाने पर पाण्डव लोग तीथयात्रा का निश्चय करके थोड़े से ब्राह्मणों के माथ काम्यक वन में तीन रात और रहे । जब मृगशिरा नक्षत्रवाली पूर्णमामी बीत गई और पुष्य ननत्र आया तब मस्तिपाठ होने के बाद छाल और मृगचर्म पहने हुए पाण्डव लोग हथियार लेकर, और पुरोहित धौम्य तथा बचे हुए ब्राह्मणों के माथ रथ पर सवार होकर, पूर्व की ओर तीर्थयात्रा के लिए चले। इन्द्रसेन आदि नौकर और भोजन बनानेवाले ब्राह्मण उनके पीछे पीछे चौदह ग्थों पर मवार होकर चले। तरह तरह की बातचीत में थकावट मिटान हुए पहले उन्होंने नैमिषारण्य के अन्तर्गत गोमती नदी के अति पवित्र तीर्थों में स्नान किया। इसके बाद रास्ते में बहुत से तीर्थस्थानों का दर्शन करते हुए व प्रयाग पहुँचे । वहाँ गङ्गा-यमुना के प्रसिद्ध सङ्गम पर कुछ दिन रहे। महर्षि लोमश तीर्थों की उत्पत्ति का हाल, इतिहास और माहात्म्य तथा उनके सम्बन्ध की तरह तरह की जी लभानेवाली कथायें कह कर पाण्डवों के भ्रमण और दर्शन सुख को दूना करने लगे।
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