पहला खण्ड] पाण्डवों का राज्यहरण इसके बाद विदुर, धृतराष्ट्र के आज्ञानुसार, इच्छा न होने पर भी, घोड़े पर सवार होकर पाण्डवों की राजधानी में पहुँचे और कुबेर के महल के समान राजभवन में जाकर युधिष्ठिर के पास बैठ गये। सबके प्यारे युधिष्ठिर, विदुर की यथोचित पूजा करके पूछने लगे :- हे विदुर ! आपकी यात्रा निर्विघ्न समाप्त हुई है न ? कौरवों के कुशल-समाचार सुनने के लिए हम बड़े उत्सुक हैं। दुर्योधन आदि भाई लोग, चचा धृतराष्ट्र के आज्ञाकारी तो हैं ? विदुर ने कहा :-पुत्र और सम्बन्धियों समेत महात्मा धृतराष्ट्र कुशल से हैं। इस समय उन्होंने तुम्हारे कुशन-समाचार पूछे हैं और जुआ खेलने के लिए भाइयों समेत तुम्हें न्योता दिया है। वहाँ तुम अपनी सभा की तरह खेलने की एक सभा देखोगे। तुम्हारे दर्शन करके कौरव लोग बड़े प्रसन्न होंगे। तुम्हें यही समाचार देने के लिए हम आये हैं। कहो, इस समय तुम्हारा क्या अभिप्राय है ? युधिष्ठिर ने कहा :-महाशय ! जुआ लड़ाई का घर है। इसलिए उसमें फँसना क्या आप अच्छा समझते ह ? इसके उत्तर में विदुर बोले :- जुश्रा अनर्थ की जड़ है, यह हम अच्छी तरह जानते हैं। हमने धृतराष्ट्र को इस काम से रोकने की चेष्टा भी की थी। किन्तु उन्होंने हमारी बात न मानी। इस समय जो तुम अच्छा समझो करो। युधिष्ठिर ने कुछ देर सोच कर पूछा :- अच्छा यह तो कहिए, खेलने के लिए कौन कौन से जारी वहाँ उपस्थित होंगे ? विदुर ने कहा :-सुनते हैं कि जुआ खेलने में चतुर शकुनि, चित्रसेन, राजा सत्यव्रत और पुरुमित्र वहाँ आवेंगे। यधिष्ठिर बोले :- अकेले धृतराष्ट्र के कहने से हम न जाते । क्योंकि हम जानते हैं कि वे अपने पुत्रों के बड़े पक्षपाती हैं; वे सर्वथा उन्हीं के वश में हैं। पर जब खुद आप हमें सभा में खेलने के लिए बुलाने आये हैं तब निमन्त्रण स्वीकार करना ही होगा। यदि हमें कोई खेलने के लिए बुलाता है तो हम अवश्य जाते हैं। यही हमारा नियम है। यदि ऐसा न होता तो कपटी जुआरी शकुनि के साथ खेलने के लिए कभी राजी न होते। यह कह कर युधिष्ठर ने साथ चलनेवालों को तैयार होने के लिए कहा और दूसरे दिन द्रौपदी आदि स्त्रियों और भाइयों के साथ रथ पर सवार होकर चल दिये। जब युधिष्ठिर आदि हस्तिनापुर पहुंचे तब धृतराष्ट्र, द्रोण, भीष्म, कर्ण, कृप, अश्वत्थामा आदि सब लोग उनसे मिले। प्रज्ञाचक्ष धृतराष्ट्र ने सबका माथा सूंघा । कौरव लोग देखने में सुन्दर पाण्डवों को देख कर बड़े प्रसन्न हुए। धृतराष्ट्र की बहुवें द्रौपदी के अत्यन्त सुन्दर वस्त्र और गहनों को बड़ी चञ्चलता से देखने लगीं। पहले तो थके हुए पाण्डवों ने कसरत आदि करके स्नान किया, फिर चन्दन लगा कर और नित्यकर्म करके उन्होंने भोजन किया। इसके बाद वे दूध की तरह सफेद पलंगों पर सो गये। अच्छी नींद आने से सारी थकावट जाती रही। सबेरे वे लोग खेलने के मण्डप में गये और पूजनीय राजों की क्रम क्रम से पूजा करके सब लोग चित्र विचित्र आसनों पर जा बैठे। तब शकुनि, महाराज युधिष्ठिर से बोले :- हे युधिष्ठिर ! सभा के सब लोग तुम्हारा रास्ता देख रहे हैं। आओ, खेल शुरू करें। शकुनि को बहुत आग्रह करते देख युधिष्ठिर को सन्देह हुआ । वे कहने लगे :-
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