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है। संगृहीत पद्यों को जिन ग्रंथों वा स्थलों से लिया गया है तथा जिनसे भूमिकादि लिखने में किसी न किसी प्रकार की सहायता मिल सकी है उनकी एक सूची पुस्तक के अंत में 'सहायक साहित्य' के नाम से दे दी गई हैं। संभव है उसमें कई उल्लेखनीय नामों का समावेश नहीं हो पाया हो, किंतु ऐसी बात भूल से ही हो गई होगी। प्रस्तुत संग्रह का संपादक उन सभी लेखकों, प्रकाशकों वा साहित्य-प्रेमियों का आभारी है जिनसे उपलब्ध होने वाली सामग्रियों का उसने किसी न किसी रूप में उपयोग किया है अथवा जिनकी विचार-धारा वा संकेतों द्वारा उसे कोई प्रेरणा मिल पायी है। संतों की अधिकांश रचनाएं बहुत कुछ उपेक्षित सी ही बनी रहती आई हैं और अभी तक केवल कुछ ही साहित्य-मर्मज्ञों ने इस दिशा की ओर अपना समुचित ध्यान दिया है। अतः इस विषय के प्राय: अछूता-सा रह जाने के कारण संपादक की अनेक बातें विचित्र सी लग सकती हैं और उसके कथनों में अनधिकार चेष्टा का भी प्रतीत होना संभव है। फिर भी उसे विश्वास है कि इस पुस्तक में संगृहीत अनेक रचनाएं उसे इस प्रकार के आरोपों से बचाने में स्वयं समर्थ हो सकेंगी।

अंत में मैं उन सज्जनों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट कर देना अपना कर्तव्य समझता हूं जिन्होंने मुझे इस प्रकार एक संग्रह निकालने के लिए अपना सुझाव दिया था अथवा जिन्होंने इसके लिए सामग्रियाँ प्रस्तुत कर दीं। इस संबंध में यहाँ विशेषकर मेरे अनुज श्री नर्मदेश्वर चतुर्वेदी का नाम उल्लेखनीय है जिन्होंने इस कार्य में मुझे अनेक प्रकार की सहायता पहुंचाई है और इसे पूरा करने में सदा सक्रिय सहयोग प्रदान किया है।

परशुराम चतुर्वेदी

बलिया,

कार्तिकी पूर्णिमा

सं॰ २००८