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गया है जिनमें कम उनकी भाषा एवं वर्णन-शैली का कुछ न कुछ पता चल जाता है। अधिक लिखने वाले संतों के संग्रहों में से पद्य चयन करते समय उनके वर्ण्य विषयों पर भी विचार किया गया है और भरसक इस बात का प्रयत्न किया गया है कि एक ही संत की विषयानुसार बदलती गई शैली की अनेकरूपता का भी कुछ परिचय मिल सके। बड़े बड़े पद्यों और विशेषतः पदों के लिए उपयुक्त शीर्षक भी दे दिये गए हैं जो उनमें कही गई प्रमुख बातों के परिचायक हैं ।

सभी संतों की भिन्न-भिन्न संस्करणों में प्रकाशित अथवा अनेक हस्तलिखित प्रतियों में संगृहीत रचनाओं के न पाये जाने के कारण उनके पाठांतरों के रूप देने अथवा उनके सुधारने का अवसर मुझे कम मिल पाया है। जो पाठ जहाँ में मिला है वहाँ से उसे लगभग उसी रूप में ले लिया गया है और पाठांतर केवल उन्हीं के दिये गए हैं जिनके विषय में ऐसा करने का संयोग मिल सका। ऐसे पाठांतर अधिकतर संत कबीर साहब, रैदासजी आदि कुछ संतों की ही रचनाओं के दिये जा सके हैं और उनके उल्लेख पद्यों के अंत में किये गए मिलेंगे। संगृहीत पद्यों के नीचे उनमें आये हुए कठिन शब्दों अथवा वाक्यांशों के अर्थ यथास्थान टिप्पणी के रूप में दे दिये गए हैं और कहीं-कहीं पर साथ ही ऐसी अन्य पंक्तियाँ भी उद्धृत कर दी गई हैं जो दूसरे रचयिताओं की होती हुई भी, समान भाव व्यक्त करती हैं। ऐसी पंक्तियों में कहीं-कहीं भावसाम्य अतिरिक्त शब्दसाम्य तक के उदाहरण स्पष्ट दीख पड़ेंगे।

प्रस्तुत संग्रह में अधिकतर अपेक्षाकृत सरल एवं सुबोध रचनाओं को ही स्थान दिया गया है और इस बात का ध्यान रखा गया है कि उनमें उलटबासियों जैसे गूढ़ार्थवाची पद्यों का बहुत कम प्रवेश हो पाये। फिर भी संतों के प्रयोग में बहुथा आने वाले उन पारिभाषिक शब्दों की एक सूची भी अंत में दे दी गई है जो संगृहीत पद्यों में किसी न किसी प्रकार आ गए हैं। संगृहीत पद्यों में से कई के—अनेक शब्दों