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आधुनिक युग ५६७ एवं जीवात्मा एकाकार हो जाते हैं और खुदी (देहात्मभाव) खुदाई (ब्रह्म भाव ) में परिणत हो जाती है । स्वामी रामतीर्थ की उपलब्ध रचनाओं में एक सच्चे संत के विचार भावावेश की शैली में व्यक्त किये . गए दीख पड़ते हैं और उनमें साविक जोवन जागरूक बना दीखता है । उनके पों को भाषा में फारसी तथा अरबी के शब्दों का बाहुल्य है और वे अधिकतर उर्दू की ही बढ़ों में लिखे पाये जाते हैं । उनमें ओज एवं प्रवाह के साथसाथस्वानुभूति का वह आनंदोल्लास भी है जो प्रायः गंभीरतम अध्यात्मिक जोन में ही संभव हुआ करता है । गजल स्वेतावनी (१) शाहंशाहे जहान है, सायल हुआ है तू । पैदा कुने जान है, डायल हुआ है हूं । सौ बार गर्ल होवे तो, धो धो पियें कदम । लयों चल सिंह माह से सयल हुआत है तू । खंजर की क्या मजाल कि इक जख्म कर सके । तेरा ही है खयाल कि घायल हुआ है तू ।? नया हर गदआ। शाह का राक्षिक है कोई और। अलासो तंग दस्तों का कायल हुआ है तू । टाइम है तेरे जरे के मौके की ताक में । । क्यों डर से उसके मुफ्त में जब यल हुआ है लू ।। हम बगल तुझसे रहता है हर आम राम तो । बन पक्ष अपनी वस्ल में हायल हुआ है त 1१। शहंशहे जहान =विश्व का समापूं। सयल ==प्रार्थ, मंगन । पैदा कुने जमाम काल का भी रचयिता । डायल=.Diat घड़ी या फूप घड़ी का बनावटी कालसूचक चेहरा 'लक्ष्क्भ-=पैर• एचजख . . माह