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आधुनिक युग ५६ १ लोगों की भूल (११) संदी ररी मेरे चित्र अचरज हो । अचरज अचरज अचरज होय 1१। सचा सार सुस शव का, सो मा जाने को है२है। समरथ सतगुरु दीन दयाला, राधास्वामी प्रग सय है।३। प्रीत प्रतीत चरम नहिं बारे, भेरम । रहे सब लोय १४? । ‘जनम मरल चौरासी फर, भुगत रहे सब कोय है।६। क्रम संरम संपरा हुए बाव, जनम अकारथ खोय ।६। राधास्वामी चरन धार हिये अंतरसब तेरा कारज होय 1७॥ लiय -लोग । उलका उलटा व्यवहार (१२) होली खेल न जाने बाबरिया, सतगुरु को दोष लगावें ११। जगत लाज मरजाद में अटकी, पूंघट खोल न आये २। प्रेस रग घट रन न जाने, सरस गुलाल गुलाब 7 ३। डगमग भक्सी चाल अनी, जय ढंग झोंके खावे ।४। ‘fमदा धूल से उड़ उड़ भागे, सतसंग मिक्ट न आने ३५। यच दुष्ट का रंग ले सथा मित पिचकार छुड़ावे । ६३ आबर मान भर भर , दीन अंग नह लाखे ५७। बचन सुने पर चित न समावे, छिन छिन काल भुलावे 1८। मन माया में जाल बिछाया, सब जिब नाच नचावे ।।। दया करें सतलुरु मन मईसोहे घर की राह पाचे 1१०। प्रीत प्रतीत बढ़ाबत दिन दिन, धस्वी वरन समावें ।५११। अनेड़ी =थींर्थ, निष्प्रयोजन । छुड़ावे खूबवेचलवाती है । अपनी कठिनाइयां (१३) भोग वासना मनमें घी, मसे संतसेंग किया न जाय ।टकी : मैं चाहूँ ो हूँ भोग न को, बेख भोमि अति ललचाय १५१।