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अनrनिक यु ५४१ अाद औअंत घर संत पहिचनियां। दल तुलसी अल असर न्य।र १४। च-=चोज, चमत्कारपूर्ण उक्ति में हो ५ अकल लूप्रखंड । लारा साथसाथ, पढ़ेपीछे से सकल=सभी कलाओं से पूर्ण । अरिलल रूप रेरू नह नाम ठाम कहत अनामी । ह नाम रूप से भिन्न भिन्न सोइ कहत बखानी है। सल नाम सतलोक सोक सब दूर बताई । अरे हां, तुलसी तान लोक में काल ताहि निन क्रहि गावं 1१है निर्युत कहिये बह वेद परमातम गावा। पांच तस न बंधा जीब मातम कहाव है अतम इंद्री बस फीस बिच रह फंसाई । अरे हां, तुलसी जड़ वेतन की गांठ ठाठ म्न जग उपजाई ।।२३। मन पूरा दूत । है मूत से रचना ठानी । ब्रह कियो बनाई रजोगुन ताको जानी ॥ तम संकर सत बिस्तु तीन मनही उप जाया । अरे हां, तुलसी मन माया गुन महैि ताहि सरगुन कहि गाया ।।३। ठठ =ढांचा ' मन . . . .गांय =गुण बिशिष्ट मन को हो सगुण कह दिया। कुंडलिया सद सब्द सब कहत हैं, सब्द सुन्न के पार है। सुखद सुनके पार, सार सोइ सब्द कहावै । पश्चिम द्वार के पार, पर के पर समावे ॥ दो बल कैंबल संभकार, मऊ के मधि में अवै ।