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प्राथनिक या। ५२७ वेत। गैब=गैब, परोक्ष दस्तु। एकठो=केवल एक मात्र से तार -- सुले स्वर में। (१९) खम मुवा तो जेल भया सिर को गई बलाय । सिर की गई ब लाय बहुत रुझस में माना। लापे मंगल होन बजन लाले संदियाना । बीपक ब अकास महल पर सेसेज बिछाया। सूतों सहीं अकेल खबर जब मुए की पाया । सूत पथ पसारि झरम कर डोरी टूटी। मरने कौन अब करें खतम बिशें दुविीं टूटी है। पलबू सोइ सुहागिनो जियरे प्रिय को खाय। खसम विार तो भेल भयर सिर की गई बलाय है १४। खसम मन जिसने स्वामित्व बना रखा था। सदियान उत्सव के बारे। (२०) मेरे तन तन लग गई पिंय को मीठी बोल है। पिंय की मीठी बोल सुनत में भई दिबानी। भंवर गुफा के बीच उठत हैं सोद बानी ॥ देखा पिंथ का रूप रूप में जाय सामी। जब से भय मिलाप मिले पर ना अलगानो । प्रीत पुरानी रही लिया हमसे पहिचानी है मिली जोत में जोत सुहागन पुरस समातो 24 पलट सदि के सुनत ही घंघट डारा स्लोल । मेरे तन तम लग गई त्रिको मोठी बोल ३२०1॥ भंवर गुफा=मस्तिष्क का एक रहस्यमय स्थ ।