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४५६ सं-चाव्य सुए पुरुष संग सतो अरत है, परो सेरस को भूल ।१५ पीठ मलूका दाख लदी है, करहां खास बबूल ५२है। मेड़ी मंदिर बाग बगीची, रहसी डाल न मूल 1३ जिदा पुरुष अचल अविनासी, बिना पंड अस्थ ल।४। । नैनों आगे झुकधु क अवै, रतन अमोलो फ ल 1५है। गरीबदास यह अलल ध्थान है, सुरत हिंडोले झूल 1६। दा=का । मका =मुनक्का । दाख =अंगूर । करहा =ट है मंडोंअटारी । अलल =एकांत मिध्ट (पच्छ जैसा)। रेखत देवही नहीं तो सेव किसकी कहूं किसे पूछं कोई नरह टूजा। करता ही नहीं तो किरत किसकी कई पिंड ब्रह्मांड में एक सूवा tt१॥ जागही नहीं तो जारा किसटैं कहूं, सोताही नहीं जिस जगाऊं। खोया ही नहीं तो खोज किसका कई बिधूड़ा ही नहीं किसे ढूंढ़ ला२ बोलता संग औ डोलता है नहीं, कला के कोट (अलख) छिप रहा प्यार।