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मध्ययुग (उत्तरार्द्ध) ४१ दरिया सो सूरा नहीं, जिन देह करी चकब्र ॥ मन को जीत खड़ा है, में बलिहारी सूर है।tहै। नमी झरत विगसत कमल, उपजत अनुभव ज्ञान है। जन दरिया उस देसाभिम भिन करत बखान 1१०। त्रिकुटी महिीं सुख घना, नाहीं दुख का लेस ॥ जन वरिया सुख-नहींबह कोइ अनुभविदेस ११। मन बुध चित हंकार को , है त्रिकुटी लग दौड़ ॥ जन बरिया इनके परे, सूरत को ठौर 1१२। मन बुध चित हंकार , रहें अपनी हद मांईि ।। आगे पूरन ब्रह है, सो इनको गम नाहि 1१३)। बरिया रति सिरोमनी, मिली अह्म सरोबर जाय है। जहें तीनो पहुंचे नहींमनसा बाचा काय ११४। तज धिक्कार आनाकार त, निराकार को ध्याय ॥ निराकार में पैठ कर, निराधार लौलाय t१५? प्रथम ध्यान अनुभ करेंजानें उप ज्ञान है। दरिया बहुते करते हैं, कथनी में गुजराम क१६है जात हमारी ब्रह्म है, मत पिता हे राम । गिरह हमारा सुन में, अनहद में बिसराम ५१७? बरिया सोता सकल ज, जागत नाहीं कोय ट जासे में फिर जागना, जागा कहिये सोय ११८है। वरिया लच्छन साध का, क्या गिरही घ क्या भंख ।। निकपटी निरसंक रहि, बाहर भीतर एक । मतवादी जाने नहीं, ततवादी की बात । सरज अगर उल्लुवा, गिले अंधेरी रात १२०। पारस परसा जानियेजो पलट अंग भंग ! अंग भंग पलटे नहीं, मैं है झूठा संग 44२१।