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४१२ संत-क्रा। का भयो तीरथ कियेहिये नहूं बिई । बूला कह विचार खाली सब जाबई ।।४। गत्त=गति, उद्धार ५ तिन तीनों गुण । दुआ=आशीर्वादउपदेश । धुझारूढो। जानदे=नने , छड़ सके। रखता प्रति की रीति सों जोति मैदां लिया, पवन के घोरा सों जोरा जाय किया है । पांच अरु तीन पच्चीस को बसि किया साहब को ध्यान बरि ज्ञान रस पिया है ! भूख औ प्यास नह अस औ बास नह एक साहब सों ब्रह्म जश किया है । दास बला क१ अगस गति तो लहै, तोरि के कुकुर तब गगन गढ़ लिया है ।१r जोरापुडु बा भिडंत। थिया है=स्थिर हो गया। कुकुर=संदेह का ताला । कांग्रेस अंधरे ने देखो हाथी साथो सब भूलि गयो, फूलो बढ़ जैसे रबि ससि सोहाई है। सोई मूल सोई थूल सोई फूल फूलि रो, सोई जुगबुग देख आ रूप बोई है । प्रावि मध्य अंत बोई नीके करि बेखो जोई, सोई त्रिभुवन नाथ बूद गत कोई है। गुरु गम होय बोले नेकुछ नहीं चित्त डोल, जन बूला निज घर सह समोई है ।१है