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समयुग (उत्तरार्द्ध) ३६१ क्या कहिये कहतें न बनें , जो कहिये कहतेहि लजइ ये 1 १०। एक कहूं तो अनेक सौ दोसतएक अनेक नहीं क ऐसो। आदि कहूं तिहि अंत झाबतआदि न अंत में मध्य सु कंसते॥ गोपि कहूं तौ अगपि कहा यह, गोपि अपि न कभगे न बैसो। जोइ कहूं सोई नह सुन्दरहै तो सहो यदि से कौ तैसो १११। बैठे तो बैठे चलें तो घले पुलि, पोछे तो पीलैहि आगे तौ प्र।। बोलें तो व्ोद न बोले तो मौनहि, सोवे तौ सोवे जागे तो जारी ! षाड़ तो घइ नहीं तौं नहीं , है तो प्रहै अरु स्यारी तौ स्याएं । सुन्दर ज्ञानी की ऐसी दसा यह जाने नहीं कहूं राग विरार्ग 1१२। बिना विचरे बसुधा परि, जा घट आतम ज्ञान अंपा। कास न क्रोध न लोभ में मोहन राण न देष न स्हारों से थाने योग ने भोण न रयाग न संग्रह, यह दशा न हवयाँ न उधारी। सुन्दर कोड न जानि सके यहगोकुल गईव को पैड हिन्य १३। एकदि ब्रह्म रल भरिपूरि तो, दूसर कौंन बताया ह। जो कोउ जीव करे उ प्र सांम तौ, जीब कहा क ब्रह्मा में न्यारी में जो कहै जीव भयौ जगदोसते, तो रवि साह कहां की अंधा। सुंदर मौन गही यह जानिककॉनर्दू अति न होत चिया 1१४। देह सराब तेल पुनि मारुत, बाती अंतःकरण विचार। अगट जोति यह चेतनि बो, जासं भयो सकल संरा सार उपापक अरिन मथन करि जयेबीपक बहुत भांति विस्तार। सुन्दर अद्भुत रचना तेरीथूहों एक अनेक प्रकार 1१५। (१) निपामैं । -गढ़ा जाता है। (५) उनहार ==सदृशता के (६) विवस्वत:सूचै। (७) वर्धा बढ़ता है । हो उसी समय (8) हुये हैही ।(११)गोपि =गोयअप्रत्यक्ष । ऊभो म बैंसोनम खड़ा न बैठा हुआा।(१३) म्हारी न था। =मेरा न तुम्हारान अपन म पराया । ढक्ौ-= वस्त्रों से आच्छादित।(१४) रवि . . .अंधरी -:-यदि छात्मा स्वय