यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मध्ययुर (पूर्वार्द्ध) बर्बीर, न र, बनारसीदास, बान और अमानंद की रचनाएं भी सम्मि इन, न्चनाओं को पढ़ने से पता चलता है कि वे उच्न्त्र झोटे के अनुभवी व्यक्ति और कवि थे । उनकी उक्त दो पुस्तकों देश ा संस्करण आज तक निकले हैं इनमें उनकी वास्तविक रच . ऑओं की पूरी छानबीन की गई नहीं मिलती । इस कारण उनके आधार पर उनके मौलिक विचारधारा का ठीक-टी रिचय पाना अत्य त कठिन कहा जा सकता है । फिर भी, जहां तक अनुमान किया जा सकता है, उनकी आध्यात्मिक प्रेरणा का मूल स्नो बहत व्यापक एवं उदार था और उनमें स्वानुभूति जनित सहृदयता की भी कमी नहीं थी। उनकी कन-ौली में भी, अन्य संत कवियों की ही भाँति सरलता वार स्वाभाविकतार लक्षित होती है । उसमें पदलालित्य एवं सरसता भी बहुत कुछ पायी जाती है । आत्मानुभूति का महत्व (१) , आतंमअनभवकू ल की नवली को त। लाक न पकड़े वासनाकान है परतीत। अनुभव नाथ कुई क्यों न जगाई। ममतासंग सो पtय अजगलथत हें दूध दुहार्वे में मेरे कहे ते बीज न , हूँ ऐसिही सिखा। बहोत कहें त लागत ऐलोअंगुली सरप दिखाये । औरन के संग रहते चेतन, वेतन प्रताप बताओ। । प्रानंबघन की हसति अनंदा, सिंह सरांय कहाव है॥ वासना =गंध। कान राह परतीत =अनाहत की ध्वनि का अनुभव होता है । शुजागलथन =बेकसे के गले में लटकने वाली और स्तन सी जार पड़ने वाली छीमियां । अंगुली...दिखावै: =जैसे उंगलक दिखलाने से सर्स खोझ उठता हैं। औौरन.. . बताऔरों (विषयादि) से अनुरक्त रह कर अज्ञानी हो जाने पर भी अपने को ब्रह्म कहता है ।