यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६ संदकाव्य हउमै अहंता को बु द्धि वा भाव। नाइ-=स्नान करे। भवि=नावा रावद के चक्कर में थाढ =स्थाईन, पद । सु के शब्द (२) अंदरि हीरा लालू वाइआ। र के सबदि परखि परखाइना ॥ जिन सघु पले सत्रु, सत्रु कसटी लावणिया है।१। हड बी जोड वाहे रही वाणी मंनि बसावणिया। अंजन महि निरंजनू पइयाजोतोजोहिसिलावणिया ।रहार ॥ इस काइ अंदरि बहुछ पसारा। नास निरंजनू अति अगस अपारा ॥ शुरमु सि होवें सोई पएआप बसि मिलावणिया ।२। मेरा कुएं सघु चिढाए । र परसादी सघु चिति लाए। सवो सच बरतें सभनी थाई, सच सचि समावणिया ।।३। वे पर बाढ़ सघु मेरा पिनारा । किलविख अवगण काणहारा ॥ प्रेम प्रीति सदा चिआइवी, भाई भगति जिंटवणिया ।।४५। सेरी भगति सची के सर्वे भवं। अप बेइ न पछोलावे । सभना जोआ का एको दाना, सबवे मारि र जीवावणिया १५५। हरि तुभु बाझढ़ से कोई नही । हरि तुर्थ सेबीते तु सालाहो । आपे मेलि लैहु प्रभ साझेपूरे करमि त पावणिप्र 1६। मैं होश न कोई तुचे जहा। तेरी मदरी सीतसि बेहा । अनदिनु सारि समालि हरि रखेहि (र खि सहज समस्वणिमा 1७। सुधु जे वgमैं होश न कोई, सुषु आये सिरजी आपे गोई ॥ तु आवेही घड़ेि भंनि सवारहनानक नाम सुहावणिमा १८ पले अनुभव कर लिया, जॉन लिया ! स -सत्थ : वसावणिमा = जम कर धर कर लेने वालो। गुरमुखि गुरुपदेशानुसार चलने वाला। ढूिंढ़ाए=आस्था करा बी। बरसे =व्याप्त है। किलविख =फिल्विा पाप। सभनी थाई सत्र। तेरी... भावै तेरी भक्ति को उस समय की स्वीकृति पर ही निर्भर है। जोआ... बात=कर्ता। बाझटु - बिना। '