यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२४४ संतकाव्य सुचा योग (१०) जो8 न किया जोस न डंडे, जो न भभ सम चढ़ाई। जोगु न मुंदी सृद्धि मुडाइऔ, जो न सिगी वाइथे। अंजन माहि निरंजन रहीौ जोग जु गति इवं पईओ है१!! राली जोगु न होई' एक ब्रिटि करि समसरि जय जोकी कही सोई ।हाउ 31 जोए न वाहरि मढ़ी मसाणी जो न ताड़ी लाई। जो न दस विसंतरि भवि, जोगून तोरथ नाई। अजन मदि निरंजनन रही, जोग जुगति हुभव पाईिलै !२है। सतिगुरु भेंटें ता इस तू, थावतु जि रहाई। निझर झएं सहज़ बुनि लालैं, घरही परचा पाई। अंजन भातिं नि रंजन रहोगे, जोग जुगत इब पाई ।३। नानक जीवतिथा अरि रहोगे, ऐसा जोशु क ाई। बाले बांझड़ सिगरे बाबै, तब निरमंड पशु पाई। अंजन माष्ट्रि निरंजनि रहीऔ, जो8 गति तक पाईये ।।४। मुंदी =मुद्राr। गली==साधारण स्थिति में। बाजे वातह == बिना बाजे के भी। अमोघलब्धि (११) हम घरि साजन अाए । सावे में लि मिलाए। सहजि मिलाए हरि मन भाए पंच मिले सुषु पाइआ । साई वसतु पराषति होई, जिसु सेती मनु लाइन। अनदिनु मेलु भइआरा, मनु मानिना घर मंदर सोहए। पंच सबब बुनि अनहद बाजे हम धरि साजन आए ५१। आबहु सीत पिनारे। मंगल गाबद्घ नारे। सर्व मंगल गांव ता प्रभ भबहु सोहिलड़ा जुग चारे ।