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संत-काव्य

राम कोइ न किसही केरा। जैसे तरवर पंषि वसेरा॥रहाउ॥
चंदु न होता सूरु न होता, पानी पवणु मिलाइआ।
सासतु न होता वेदु न होता, करमु कहाँ ते आइआ॥२॥
पेचर भूचर तुलसी माला, गुर परसादी पाइआ।
नामा प्रणवै परम ततु है, सति गुर होइ लषाइआ॥३॥

होती = थी। होता = था। सासतु = शास्त्र।

(२०)

भ्रम का परिणाम

काएं रे मन विधिआ वन जाइ। भूलै रै ठगसूरी बाइ॥रहाउ॥
जैसे मीनू पानी महि रहे, काल जाल की सुधि नही लहै।
जिहवा सुप्राबी लीलित लोह, अैसे कनिक कामनी बाँधिउ मोह॥१॥
जिउ मधु भाषी संच अपार, मधु लीनो मुषि दोनी छारु।
गऊ बालकंड संचै षोरु, गला बाँधि दुहि लेइ अहीरु॥२॥
माइझा कारन अति करें, सो भाइसा ले गाडै घरै।
अति संचै समझै नही मूड़, बनु धरती तनु होइ गइउ धूड़ि॥३॥
काम क्रोध त्रिसना अति जरें, साथ संगति कबहूँ नहि करें।
कहत नाम देउ ताची आणि निर होइ भजी भगवान॥४॥

काएं क्यों। ठगमूरी बाइ = ठगौरी लगकर लोह = चारे से युक्त वंशी का काटा। बाक ताची आणि = उसकी वास्तविक स्थिति को चकित हो कर = बछड़े के लिए। समझ-बूझ कर।

(२१)

दयालु गुरु

सकल जनम मोकउ गुर कीना। दुष विसारि सुष अंतरि लीना॥१॥
गिआन अंजनु मोकउ गरि दीना। राम नाम बिनु जीवन मन हीना॥रहाउ॥
नामदेइ सिमरनु करि जानाँ। जगजीवन सिउ जीउ समाना॥२॥

सिमरन करि = नाम स्मरण की साधना।