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काट-काटकर लुढ़का दिया गया हो।
फत्तू--तुम अभी हो कै दिनके। मैंने भी इतने बड़े ओले नहीं देखे।
एक बृद्ध किसान--एक बेर मेरी जवानीमें इतने बड़े ओले गिरे थे कि सैकड़ों ढोर मर गये। जिधर देखो मरी हुई चिड़ियां गिरी मिलती थीं। कितने ही पेड़ गिर पड़े। पक्की छतेंतक फट गई थीं। बखारों में अनाज सड़ गये, रसोईमें बरतन चकनाचूर हो गये। मुदा हाँ अनाजकी मड़ाई हो चुकी थी। इतना नकसान नहीं हुआ था।
सलोनी--मुझे तो मालूम होता है जमींदारकी नीयत बिगड़ गई है, तभी ऐसी तबाही हुई है।
राजे०--काकी, भगवान न जाने क्या करनेवाले हैं। बार-बार मने करती थी कि अभी महाजनसे रुपये न लो। लेकिन मेरी कौन सुनता है। दौड़े२ गये २००) उठा लाये जैसे अपनी धरोहर हो। देखें अब कहांसे देते हैं। लगान ऊपरसे देना है। पेट तो मजूरी करके भर जायगा लेकिन महाजनसे कैसे गला छूटेगा।
हलधर--भला पूछो तो काकी कौन जानता था कि क्या सुदनी है। आगम देखके तब रुपये लिये थे। यह आफत न आ जाती तो १००) का तो अकेले तेलहन निकल आता। छाती भर गेहूँ खड़ा था।