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वह तो कहते थे अब तुम लोग हाकिम हुक्काम किसी को भी बेगार मत देना। जो कुछ होगा मैं देख लुंगा। कहां आज यह हुकुम निकाल दिया। जरूर कोई बात मरजीके खिलाफ हुई है।

फत्तू--हुई होगी। कौन जाने घर हीमें किसीने कहा हो असामी अब सेर हो गये, तुम्हें बात भी न पूछेंगे। इन्होंने कहा हो कि सेर कैसे हो जायंगे, देखो अभी बेगार लेकर दिखा देते हैं। या कौन जाने कोई काम काज आ पड़ा हो। अरहर भरी रखी हो दलवाकर बेच देना चाहते हों।

कई आदमी--हां ऐसी ही कोई बात होगी। जो हुकुम देंगे वह बजाना ही पड़ेगा नहीं तो रहेंगे कहां।

एक किसान--और जो बेगार न दें तो क्या करें?

फत्तू--करनेकी एक ही कही। नाकमें दम कर दें, रहना मुसकिल हो जाय। अरे और कुछ न करें लगान की रसीद ही न दें तो उनका क्या बना लोगे। कहाँ फिरियाद ले जावोगे और कौन सुनेगा। कचहरी कहां तक दौड़ोगे। फिर वहां भी उनके सामने तुम्हारी कौन सुनेगा!

कई आदमी--आजकल मरनेकी छुट्टी ही नहीं है, कचहरी कौन दौड़ेगा। खेती तैयार खड़ी है, इधर ऊख बोना है, फिर अनाज माड़ना पड़ेगा। कचहरीके धक्के खानेसे तो यही अच्छा है कि जमींदार जो कहे वही बजावें।