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रोना। गार्डका गाड़ीको न रोकना।)

हलधर--बिचारोंको कैसी दुर्गति हो रही है। हो तो, लात घूंसे चलने लगे। सब मार खा रहे हैं।

फत्तू--यहां भी घुस दिये बिना नहीं चलता, किराया दिया, घूस ऊपरसे, लात घूंसे खाये उसकी कोई गिनती नहीं। पड़ा अंधेर है। रुपये बड़े जतनसे रखे हुए हैं। कैसा जल्दी निकाल रहा है कि कहीं गाड़ी न खुल जाय।

राजेश्वरी (सलोनीसे)--हाय हाय, बिचारी छूट गई, गोदमें लड़का भी है। गाड़ी नहीं रुकी। सब बड़े निर्दयी हैं। हाय भग- वन् उसका क्या हाल होगा।

सलोनी--एक बेर इसी तरह मैं भी छूट गई थी। हरदुआर जाती थी।

राजेश्वरी--ऐसी गाड़ीपर कभी न सवार हो, पुण्य तो आगे पीछे मिलेगा; यह विपत्ति अभीसे सिरपर आ पड़ी।

(दूसरा चित्र-गांवका पटवारी खाटपर बस्ता खोले बैठा है। कई किसान आस-पास खड़े हैं। पटवारी सभोंसे सालाना नजर वसूल कर रहा है।)

हलधर--लालाका पेट तो फूलके कुप्पा हो गया है। चुटिया इतनी बड़ी है जैसे बैलकी पगहिया।

फत्तू--इतने आदमी खड़े गिड़गिड़ा रहे हैं पर सिर नहीं