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पांचवां अङ्क

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क्यों नहीं चला देते?

हलधर—जो आप ही मर रही है उसे क्या मारूं।

राजे०—अभी इतनी दया है?

हलधर—वह तुम्हारी लाजकी तरह बाजारमें बेचनेकी चीज नहीं है।

ज्ञानी—कौन कहता है कि इसने अपनी लाज बेच दी। यह आज भी उतनी ही पवित्र है जितनी अपने घर थी। उसने अपनी लाज बेचने के लिये इस मार्गपर पग नहीं रखा, बल्कि अपनी लाजकी रक्षा करनेके लिये। अपनी लाजकी रक्षाके लिये इसने मेरे कुलका सर्वनाश कर दिया। इसीलिये इसने यह कपटभेष धारण किया। एक सम्पन्न पुरुषसे बचनेका इसके सिवा और कौनसा उपाय था। तुम उसपर लांछन लगाकर बड़ा अन्याय कर रहे हो। उसने तुम्हारे कुलको कलङ्कित नहीं किया बल्कि उसे उज्ज्वल कर दिया। ऐसी बिरला ही कोई स्त्री ऐसी अवस्थामें अपने व्रतपर अटल रह सकती थी। वह चाहती तो आजीवन सुख भोग करती, पर इसने धर्मको स्वाद-लिप्सा- की भेंट नहीं चढ़ाया......आह! अब नहीं बोला जाता। बहुत सी बातें मनमें थीं......सिरमें चक्कर आ रहा है......स्वामीके दर्शन न कर सकी.........

(बेहोश हो जाती है)