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लिये आदमी कैसे-कैसे जतन करता है। (गलेमें फन्दा डालती है) दिल कांपता है। जरासा फन्दा खींच लू और बस। दम घुटने लगेगा। तड़प-तड़पकर जान निकलेगी। (भयसे कांप उठती है) मुझे इतना डर क्यों लगता है। मैं अपनेको इतनी कायर न समझती थी। सास के एक तानेपर, पतिकी एक कड़ी बातपर, स्त्रियां प्राण दे देती हैं। लड़कियां अपने विवाहकी चिन्तासे मातापिताको बचाने के लिये प्राण दे देती हैं। पहले स्त्रियां पतिके साथ सती हो जाती थीं। डर क्या है? जो भगवान यहां हैं वही भगवान वहां हैं। मैंने कोई पाप नहीं किया है। एक आदमी मेरा धर्म बिगाड़ना चाहता था। मैं और किसी तरह उससे न बच सकती थी। मैंने कौशलसे अपने धर्मकी रक्षा की। यह पाप नहीं किया। मैं भोग विलास के लोभसे यहां नहीं आई। संसार चाहे मेरी कितनी ही निन्दा करे, ईश्वर सब जानते हैं। उनसे डरनेका कोई काम नहीं।

(फन्दा खींच लेती है)

(तलवार लिये हलधरका प्रवेश)

हलधर—(आश्चर्यसे) अरे! यहां तो इसने फांसी लगा रखी है (तलवार से तुरत रस्सी काट देता है और राजेश्वरीको सँभालकर फर्शपर लिटा देता है)

राजेश्वरी—(सचेत होकर) वही तलवार मेरी गर्दनपर