संग्राम
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वह अगर मुझे पतिता और कुलटा समझते हैं तो मैं भी उन्हें नीच और अधम समझती हूं। वह मेरी सूरत न देखना चाहते हों तो मैं उनकी परछाईं भी अपने ऊपर नहीं पड़ने देना चाहती। अब उनसे मेरा कोई सम्बन्ध नहीं। मैं अनाथा हूं, अभागिनी हूँ, संसारमें कोई मेरा नहीं है।
और किवाड़ खोलती है ज्ञानीका प्रवेश)
ज्ञानी—बहिन क्षमा करना, तुम्हें असमय कष्ट दिया। मेरे स्वामीजी यहाँ हैं या नहीं। मुझे एक बार उनके दर्शन कर लेने दो।
राजे०—रानी जी, सत्य कहती हूं वह यहाँ नहीं आये।
ज्ञानी—यहाँ नहीं आये!
राजे०—न! जबसे गये हैं फिर नहीं आये।
ज्ञानी—घरपर भी नहीं हैं। अब किधर जाऊँ। भगवन्, उनकी रक्षा करना। बहिन, अब मुझे उनके दर्शन न होंगे। उन्होंने कोई भयङ्कर काम कर डाला। शंकासे मेरा हृदय काँप रहा है। तुमसे उन्हें प्रेम था। शायद वह एक बार फिर आयें। उनसे कह देना ज्ञानी तुम्हारे पदरजको शीशपर चढ़ानेके लिये आई थी। निराश होकर चली गई। उनसे कह देना वह अभागिनी, भ्रष्टा, तुम्हारे प्रेमके योग्य नहीं रही।