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छठा दृश्य

(स्थान—सबलसिहका कमरा, समय—१ बजे रात)

सबल—(ज्ञानीसे) अब जाकर सो रहो। रात कम है।

ज्ञानी—आप लेटें, मैं चली जाऊंगी। अभी नींद नहीं आती।

सबल—तुम अपने दिल में मुझे बहुत नीच समझ रही होगी?

ज्ञानी—मैं आपको अपना इष्ट देव समझती हूँ।

सबल—क्या इतना पतित हो जानेपर भी?

ज्ञानी—मैली वस्तुओंके मिलनेसे गंगाका माहात्म्य कम नहीं होता।

सबल—मैं इस योग्य भी नहीं हूं कि तुम्हें स्पर्श कर सकूं। पर मेरे हृदयमें इस समय तुमसे गले मिलनेकी प्रबल उत्कण्ठा है। याद ही नहीं आता कि कभी मेरा मन इतना अधीर हुआ हो। जी चाहता है तुम्हें प्रिये कहूं, आलिङ्गन करूं, पर हिम्मत नहीं पड़ती। अपनी ही आंखोंमें इतना गिर गया हूं।