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देखूं मामूली कपड़े पहनकर गये हैं या अचकन पाजामा भी पहना है।

(जाती है और एक क्षणमें लौट आती है।)

ज्ञानी—कपड़े को साधारण ही पहन कर गये हैं, पर कमरा न जाने क्यों भांयँ भांयँ कर रहा है, वहां खड़े होते एक भयसा लगता था। ऐसी शंका होती है कि वह अपनी मसनदपर बैठे हैं पर दिखाई नहीं देते। न जाने क्यों मेरे तो रोएं खड़े हो गये और रोना आ गया। किसीको भेजकर पता लगवाइये।

(सबल दोनों हाथोंसे मुंह छिपाकर रोने लगता है।)

ज्ञानी—हायँ, यह आप क्या करते हैं! इस तरह जी छोटा न कीजिये। वह अबोध बालक थोड़े ही हैं। आते ही होंगे।

सबल—(रोते हुए) आह ज्ञानी! अब वह घर न आयेंगे अब हम उनका मुंह फिर न देखेंगे।

ज्ञानी—किसीने कोई बुरी खबर कही है क्या? (सिसकियां लेती है।)

सबल—(मनमें) अब मन में बात नहीं रह सकती। किसी तरह नहीं। वह आप ही बाहर निकली पड़ती है। ज्ञानीसे मुझे इतना प्रेम कभी न हुआ था। मन उसकी ओर खिंचा जाता है। (प्रगट) जो कुछ किया है मैंने ही किया है। मैं ही