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चौथा अङ्क

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अपमान! इसका परिणाम और क्या होता? यही आपत्तिधर्म था। इसके लिये पछताना व्यर्थ है। (एक क्षणके बाद) जी नहीं मानता, वही बातें याद आती हैं। मैंने कंचनकी हत्या क्यों कराई? मुझे स्वयं अपने प्राण देने चाहिये थे। मैं तो दुनियाका सुख भोग चुका था। स्त्री, पुत्र, सबका सुख पा चुका था। उसे तो अभी दुनियाकी हवातक न लगी थी। उपासना और आराधना ही उसका एकमात्र जीवनाधार थी। मैंने बड़ा अत्याचार किया।

(अचल सिंहका प्रवेश)

अचल—बाबूजी, अबतक चाचाजी गंगास्नान करके नहीं आये।

सबल—हां देर तो हुई। अबतक तो आ जाते थे।

अचल—किसीको भेजिये जाकर देख आये।

सबल—किसीसे मिलने चले गये होंगे।

अचल—मुझे तो न जाने क्यों डर लग रहा है। आजकल गंगाजी बढ़ रही हैं।

(सबल सिह कुछ जवाब नहीं देते।)

अचल—वह तैरने दूर निकल जाते थे।

(सबल चुप रहते हैं।)

अचल—आज जब वह नहाने जाते थे तो न जाने क्यों