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पहला अंक

हैं कि इसकी मिट्टी उठे। अपनी सवारीके लिये हाथी लाता है, उसका दाम असामियोंसे वसूल करता है। हाकिमोंकी दावत करता है, सामान गांववालोंसे लेता है।

हलधर––दावत सचमुच करूं कि दिल्लगी करते थे?

राजे॰––दिल्लगी नहीं करते थे, दावत करनी होगी। देखा नहीं चलते-चलते कह गये। खायेंगे तो क्या, बड़े आदमी छोटोंका मन रखनेके लिये ऐसी बातें किया करते हैं, पर आयेंगे जरूर।

हलधर––उनके खाने लायक भला हमारे यहाँ क्या बनेगा?

राजे॰––तुम्हारे घर वह अमीरी खाना खाने थोड़े ही आयेंगे। पूरी-मिठाई तो नित्य ही खाते हैं। मैं तो कुटे हुए जबकी रोटी, सावांकी महेर, बथुवेका साग, मटरकी मसालेदार दाल और दो तीन तरहकी तरकारी बनाऊँगी। लेकिन मेरा बनाया खायेंगे! ठाकुर हैं न?

हलधर––खाने पीनेका इनको कोई विचार नहीं है। जो चाहे बना दे। यही बात इनमें बुरी है। सुना है अंग्रेजों के साथ कलपघरमें बैठकर खाते हैं।

राजे॰––ईसाईमतमें आ गये हैं?

हलधर––नहीं, असनान, ध्यान सब करते हैं। गऊको कौरा दिये बिना कौर नहीं उठाते। कथा-पुराण सुनते हैं। लेकिन