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हलधर––अब हुकुम हो।

सबल––मेहमानके हुकुमसे दावत नहीं होती। खिलानेवाला अपनी मरजीसे तारीख और वक्त ठोक करता है। जिस दिन कहो आऊँ। फत्तू, तुम बतलाओं इसकी बहू काम-काजमें चतुर है न? जबान की तेज़ तो नहीं है?

फत्तू––हजूर मुंँहपर क्या बखान करूंँ, ऐसी मेहनतिन औरत गाँवमें और नहीं है। खेतीका तार तौर जितना यह समझती है उतना हल धर भी नहीं समझता। सुशील ऐसी है कि यहाँ आये आठवां महीना होता है किसी पड़ोसीने आवाज नहीं सुनी।

सबल––अच्छा तो अब मैं चलूंगा, जरा मुझे सीधे रास्तेपर लगा दो नहीं तो यह जानवर खेतोंको रौंद डालेगा। तुम्हारे गांवसे मुझे सालमें १५००) मिलते हैं। इसने एक महीनेमें २०००) की बाज़ी मारी। हलधर, दावतकी बात भूल न जाना।

(फत्तू और सबल सिंह जाते हैं।)

राजे॰––आदमी काहेको हैं, देवता हैं। मेरा तो जी चाहता था उनकी बातें सुना करूं। जी ही नहीं भरता था। एक हमारे गांवका जमींदार है कि प्रजाको चैन नहीं लेने देता। नित्य एक एक बेगार, कभी बेदखली, कभी जाफा, कभी कुड़की, उसके सिपाहियों के मारे छप्परपर कुम्हड़े कद्दुतक नहीं बचने पाते। औरतोंको राह चलते छेड़ते हैं। लोग रात-दिन मनाया करते