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तीसरा अङ्क

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पूरा होगा जितनी मुझे आशा थी। (प्रगट) यह प्रश्न आप व्यर्थ करते हैं। इतनी रात गये जब कोई पुरुष किसी अन्य स्त्रीके पास जाता है तो उसका एकही आशय हो सकता है।

सबल—उसे तुमने आने क्यों दिया?

राजे०—उन्होंने आकर द्वार खटखटाया, कहारिन जाकर खोल आई। मैंने तो उन्हें यहां आनेपर देखा।

सबल—कहारिन उससे मिली हुई है?

राजे०—यह उससे पूछिये।

सबल०—जब तुमने उसे बैठे देखा तो दुत्कार क्यों न दिया?

राजे०—प्राणेश्वर, आप मुझसे ऐसे सवाल पूछकर दिल न जलावें। यह कहांकी रीति है कि जब कोई आदमी अपने पास आये तो उसको दुत्कार दिया जाय, वह भी अब आपका भाई हो। मैं इतनी निठुर नहीं हो सकती। उनसे मिलनेमें तो भय जब होता कि जब मेरा अपना चित्त चंचल होता,मुझे अपने ऊपर विश्वास न होता। प्रेमके गहरे रंगमें सराबोर होकर अब मुझपर किसी दूसरे रङ्गके चढ़नेकी सम्भावना नहीं है। हां, आप बाबू कंचनसिंहको किसी बहानेसे समझा दीजिये कि अबसे यहां न आबें। वह ऐसी प्रेम और अनुरागकी बातें करने लगते हैं कि उसके ध्यानसेही लज्जा आने लगती है। विवश होकर बैठती हूँ, सुनती हूँ।