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छठा दृश्य
(स्थान—शहरवाला किरायेका मकान। समय—आधीरात,
कंचनसिंह और राजेश्वरी बातें कर रहे हैं।)

राजे०—देवरजी,मैंने प्रेमके लिये अपना सर्वस्व लगा दिया। पर जिस प्रेमकी आशा थी वह नहीं मयस्सर हुआ। मैंने अपना सर्वस्व दिया है तो उसके लिये सर्वस्व चाहती भी हूँ। मैंने समझा था एकके बदले आधीपर संतोष कर लूंगी। पर अब देखती हूँ तो जान पढ़ता है कि मुझसे भूल हो गई। दूसरी बड़ी भूल यह हुई कि मैंने ज्ञानी देवीकी ओर ध्यान नहीं दिया था। उन्हें कितना दुःख, कितना शोक, कितनी जलन होगी इसका मैंने जरा भी विचार नहीं किया था। आपसे एक बात पूछूं नाराज़ तो न होंगे।

कंचन—तुम्हारी बाससे मैं नाराज हूँगा!

राजे०—आपने अबतक विवाह क्यों नहीं किया?

कंचन—इसके कई कारण हैं। मैंने धर्मग्रन्थोंमें पढ़ा था कि गृहस्थ जीवन मनुष्यकी मोक्षप्राप्ति में बाधक होता है। मैंने