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निकले। कोई वीर आत्मा निकल आती जो मेरे रास्तेसे इस बाधाको हटा देती, फिर ज्ञानी अपनी हो जाती। यह दोनों उस कामके तो नहीं हैं, पर हिम्मती मालूम होते हैं। बुढ़िया दीन बनी हुई है पर है पोढ़ी नहीं तो इतने घमण्डसे बातें न करती। मियां गांठका पूरा तो नहीं पर दिल का दिलेर जान पड़ता है। उत्तेजनामें पड़कर अपना सर्वस्व खो सकता है। अगर इन दोनोंसे कुछ धन मिल जाय तो सबइन्सपेक्टरको मिलाकर, कुछ माया जालसे कुछ लोभसे, काबूमें कर लूं। कोई मुकदमा खड़ा हो जाय। कुछ न होगा भण्डा तो फूट जायगा। ज्ञानी उन्हें अबकी भांति देवता तो न समझती रहेगी। (प्रगट) इस पापीको दण्ड देने का मैंने प्रण कर लिया है। ऐसे कायर व्यक्ति भी होते हैं यह मुझे ज्ञात न था। हरीच्छा। अब कोई दूसरी ही युक्ति काममें लानी चाहिये।

सलोनी—महाराज, मैं दीन दुखिया हूँ, कुछ कहना छोटा मुंह बड़ी बात है, पर मैं आपकी मदद के लिये ही हर तरह हाजिर हूँ। मेरी जान भी काम आये तो दे सकती हूं।

फत्तू—स्वामी जी मुझसे भी जो हो सकेगा करनेको तैयार हूँ। हाथोंमें तो अब मकदूर नहीं रहा पर और सब तरह हाजिर हूं।

चेतन—मुझे इस पापीका संहार करनेके लिये किसीकी