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तीसरा अङ्क

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तो कठिनाई होगी। इसके लिये किरायेपर एक मकान लिया गया है, तीन लौडियाँ सेवा टहलके लिये हैं, ठाकुर प्रातःकाल जाता है और घड़ी भरमें वहाँसे लौट आता है। सन्ध्या समय फिर जाता है और ९.१० बजेतक रहता है। मैं इसका प्रमाण देता हूँ। मैंने सबलसिंहको समझाया पर वह इस समय किसीकी नहीं सुनता। मैं अपनी आंखों यह अत्याचार नहीं देख सकता। मैं सन्यासी हूँ। मेरा धर्म है कि ऐसे अत्याचारियोंका, ऐसे पाखंडियोंका संहार करूं। मैं पृथ्वीको ऐसे रंगे हुए सियारोंसे मुक्त कर देना चाहता हूँ। उसके पास धनका बल है तो हुआ करे। मेरे पास न्याय और धर्मका बल है। इसी बलसे मैं उसको परास्त करूंगा। मुझे आशा थी कि तुम लोगोंसे इस पापीको दण्ड देनेमें मुझे यथेष्ट सहायता मिलेगी। मैं समझता था कि देहातोंमें आत्माभिमानका अभी अन्त नहीं हुआ है, प्राणी इतने पतित नहीं हुए हैं कि अपने ऊपर इतना घोर, पैशाचिक अनर्थ देखकर भी उन्हें उत्तेजना न हो, उनका रक्त न खौलने लगे। पर अब ज्ञात हो रहा है कि सबलने तुम लोगोंको मंत्रमुग्ध कर दिया है। उसके दयाभावने तुम्हारे आत्मसम्मानको कुचल डाला है। दयाकाआघात आत्याचारके आघातसे कम प्राणघातक नहीं होता। अत्याचार के आघातसे क्रोध उत्पन्न होता है, जी चाहता है मर जायें या मार डालें।