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मेरे रोएं खड़े हो जाते हैं। मैंने तो दादाको एक बार बैलकी पूँछ मरोड़ते देखा था। रोने लगी। जब दादाने वचन दिया कि अब कभी बैलोंको न मारूंगा तब जाके चुप हुई। मेरे गांव में सब लोग औंगीसे बैलोंको हांकते हैं। मेरे घर कोई मजूर भी औंगी नहीं चला सकता।

हलधर––आजसे परन करता हूँ कि कभी किसी जानवरको न मारूंगा।

(फत्तू मियाँका प्रवेश)

फत्तू––हलधर, नजर नहीं लगाता पर अबकी तुम्हारी खेती गांव भर से ऊपर है। तुमने जो आम लगाये हैं वह भी खूब बौरे हैं।

हलधर––दादा, यह सब तुम्हारा आसीरवाद है। खेती न लगती तो काका की बरसी कैसे होती?

फत्तू––हाँ बेटा, भैया का काम दिल खोलकर करना।

हलधर––तुम्हें मालूम है दादा, चांदी का क्या भाव है? एक कङ्गन बनवाना था।

फत्तू––सुनता हूँ अब रुपये की रुपये भर हो गई है। कितने की चांदी लोगे?

हलधर––यही कोई ४०–५०) रुपये की।

फत्तू––कहना चलकर ले दूंगा। हां, मेरा इरादा कटरे