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दूसरा अङ्क

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है बस दया आजाती है।

गुलाबी--मैं रोती हूँ तब तो तेरा कलेजा पत्थरका हो जाता है, उसे रोते देखकर क्यों दया आजाती है।

भृगु--अम्मां, तुम घरकी मालकिन हो, तुम रोती हो तो हमारा दुख देखकर रोती हो। तुम्हें कौन कुछ कह सकता है।

गुलाबी--तूंही अपने मनसे समझ मेरी उमिर अब नौकरी करने की है? यह सब तेरे ही कारण न करना पड़ता है? तीन महीने हो गये तूने घरके खरचके लिये एक पैसा भी न दिया। मैं न जाने किस किस उपायसे काम चलाती हूं। तु कमाता है तो क्या करता है? जवान बेटेके होते मुझे छाती फाड़नी पड़े सो दिनोंको रोऊँ कि न रोऊँ। उसपर घरमें कोई बात पूछनेवाला नहीं। पूछो महरानीसे महीने भर हो गये कभी सिरमें तेल डाला, कभी पैर दबाये। सीधेमुंह बात तो करती नहीं, भला सेवा क्या करेंगी। रोऊँ न तो क्या करूँ। मौत भी नहीं आजाती कि इस जंजालसे छूट जाती। न जाने कागद कहाँ खो गया।

भृगु--अम्मां, ऐसी बातें न करो। तुम्हारे बिना यह गृहस्ती कौन चलायेगा? तुम्हींने पाल-पोसकर इतना बड़ा किया है। जबतक जीती हो इसी तरह पाले जाव। फिर तो यह चक्की गले पड़ेगी ही।